09 मार्च, 2021

सोशल मीडिया की खेती

मैं भी सोशल मीडिया का किसान ही तो हूँ, मैं भी सारा दिन हल चलाता हूँ, अलग अलग विषयो पर सृजन के बीज बोता हूँ, सींचता हूँ... अपनी अभिव्यक्ति की, विचारों की फसल बोता हूँ.. मौका मिलते ही विपक्षियों की राष्ट्रवाद में घुन लगाने वाली फसलों में मट्ठा भी डाल आता हूँ.. लोग आते हैं मेरे विचारों की फसल देखने.. कोई ठेंगा दिखा जाता है, कोई मुस्कुरा के चला जाता है.. कोई कोई प्रेम भी बरसाता है.. पर कुछ विशिष्ट प्रजाति के प्राणी भी हैं जो नाक भों सिकोड़ कर जाते है, कुछ लोग बातें भी करते हैं, अपने विचार साझा करते हैं.. अच्छा लगता है.. मज़े की बात तो ये है कि मुझे मेरी फसल का MSP भी नही चाहिए, मैं इसके लिए लालकिले पर चढ़ाई नही करता, ना सड़क पर धरना देता हूँ..कभी कभी तो फसल चोरी भी हो जाती है, पर मैं अपनी फसल राजनीति की मंडियों में नही बेचता.. मैं विचारों की फसल बोता हूँ, सच कहता हूँ, कड़वा कसैला भी होता है, कुछ जानवर मुँह मारते हैं पर थूक कर चले जाते हैं.. मेरी फसल दरअसल बिकाऊ नही है.. मैं यूँ ही बांट देता हूँ.. जिसे चाहिए, जैसी चाहिए.. ले जाये..

20 फ़रवरी, 2021

पेट्रोल की राजनीती

 पेट्रोल की कीमतों को लेकर हमेशा से हो हल्ला मचता रहा है, चाहे सरकार किसी की भी रही हो किन्तु विपक्ष ने हमेशा इसकी बढ़ती कीमतों को मुद्दा बनाया है, और ये होना भी चाहिए क्योंकि इनकी कीमत बढ़ने का असर देश की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूप से पड़ता है.. इसी समस्या का हल करने के लिए केंद्र सरकार ने इसको GST के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव रखा था जो विपक्ष द्वारा समर्थन नही किया गया, जैसा कि आप जानते ही हैं कि बिना विपक्ष या राज्य सरकारों की सहमति के ये संभव नही है.. अब इसको लेकर राज्य सरकारों की भी अपनी मजबूरियां हैं क्योंकि राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा उन्हें पेट्रोल, शराब एवं रेवेनुए डिपार्टमेंट से ही मिलता है जिसके दम पर ही वो अपने अपने राज्य में कोई तो विकास कार्यो पर खर्च करता है तो कोई मुफ्तखोरी के नाम पर सब्सिडी में देकर वाहवाही लूटता है और अपनी पीठ थपथपाता है.. अब वैसे वर्तमान परिस्तिथि में भी राज्य सरकार चाहे तो इस पर अपने हिस्से का वैट कम कर सकती है किंतु फिर अपने पोस्टर लगाने का खर्च कम हो जाएगा, इसका उदाहरण देकर समझाता हूँ.. जैसे..

पेट्रोल की कीमत 30.50 रु
केंद्र सरकार टैक्स 16.50 रु
राज्य सरकार टैक्स 38.50रु
डिस्ट्रीब्यूटर शेयर 06.50रु
टोटल हुआ 92.00 रु
अब मज़े की बात तो ये है कि केंद्र सरकार के इस हिस्से से भी राज्य सरकार को पैसा मिलता है.. तो अब केंद्र सरकार को रोने की बजाए या तो अपने जन प्रतिनिधि को पकड़ो और राज्य सरकार के हिस्से का टैक्स कम करने का दबाव बनाओ अथवा पेट्रोल को GST में लाने की सहमति बनवाओ.. ये किंचित तभी होगा जब इस सबके बदले मिलने वाली सब्सिडी भी छोड़ने को तैयार हो क्योंकि पेट्रोल तो 30 रु लीटर ही है बाकी के पैसे तो "सुब्सिडीजीवी" और उनके पालनहारो की जेब मे ही जा रहा है.. फैसला आपका.. क्योंकि सोच है आपकी.. अब वैसे भी पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर हो हल्ला ज़्यादा वो ही मचाते हैं जिन्हें गाड़ी भी दहेज में मिली होती है... मचाओ.. इतना तो हक है आपका..

13 फ़रवरी, 2021

अंतराष्ट्रीय रेडियो दिवस

 विश्व मे मनोरंजन व संचार का सबसे पुराना माध्यम 'रेडियो' जन-जन तक अपनी बात पहुँचाने का सरल और किफायती माध्यम है। भले ही रेडियो एक शताब्दी पुराना हो लेकिन आज भी यह सामाजिक संपर्क का एक अहम स्रोत है। रेडियो ने संगीत और आपसी जुड़ाव के साथ-साथ हमें जागरुक करने का कार्य भी किया है, रेडियो के श्रोता व वो लोगो को जो रेडियो को मनोरंजक एवं उपयोगी बनाए रखने के लिए निरंतर नवाचार करते रहते हैं उनके प्रयास को प्रणाम करता हूँ, ये आज भी मेरी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा है, सुबह की मॉर्निंग वॉक के साथ कभी कुछ पुराने नगमे और फिर RJ नावेद का मिर्ची मुर्गा ओर उंस पर पंजाबी तड़का.. लाजवाब है.. रौनक के बउवा का अलग ही टशन है.. जनसंचार के इस क्षेत्र से संबद्ध कलाकारों, तकनीशियनों तथा सुधी श्रोताओं सहित सभी हितधारकों को बधाई देता हूँ.. भारत जैसे सांस्कृतिक और भाषाई विविधता वाले देश में राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक जागरूकता बढ़ाने में रेडियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है... विश्व रेडियो दिवस पर सभी श्रोताओं को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं... 

#WorldRadioDay #विश्व_रेडियो_दिवस 

RJ Naved RJ Praveen Sayema RJ Raunac

13 जनवरी, 2021

किसान आंदोलन और नरेंद्र मोदी

 एक पुराने चिरपरिचित सज्जन जो कभी कट्टर कांग्रेसी हुआ करते थे और अब रजिस्टर्ड आपिये हैं मिले तो पूछ बैठे ये मोदी इस किसान आंदोलन से खत्म हो जाएगा, उसको बोलो है हिम्मत तो किसानों को हाथ लगा के दिखाए, मैंने कहा कुछ समय पहले तुमने यही सवाल सोनिया गांधी और राहुल के संदर्भ में भी पूछा था, सवाल वही है तो भाई जवाब भी वही है कि जो सड़ सड़ के खत्म होने वाला हो उसको लाठी से खत्म करके बदनामी क्यों लें.. मतलब किसानों के नाम पे नेतागिरी चमकाने वाले लोग लगभग तीन महिने से जनजीवन को अस्त व्यस्त किये हुए हैं, इसमें से सिर्फ एक महिना दिल्ली बॉर्डर पे हुआ है इसके पहले ये ही लोग पंजाब के रेल्वे मार्गों पे धरना दे के दो महिने से जाम किये हुए थे, आंदोलन में कोई जनता की भावना की कोई बात होती है तो वो अपने आप जंगल की आग की तरह फैलता है, ऐसा कुछ नहीं हो रहा है, जितने लोग जोश से जुड़े थे पंजाब से उनको भी रोकना मुश्किल हो रहा है और वो खुद ही वापस जाने लगे हैं, दूसरे राज्यों में आग फैल नहीं रही है बल्कि उसको उकसा के फैलाने की कोशिश की जा रही है इस 130 करोड़ लोगों के देश को जाम करने के लिये 1% मतलब डेढ़ करोड़ लोगों की भी जरूरत नहीं है उस 1% का सौवां हिस्सा मतलब डेढ़ लाख लोग भी काफी है, शर्तिया कह सकता हूं की पूरे हिन्दुस्तान के सब तथाकथित किसान आंदोलनकारियों की गणना कर लो तो भी डेढ़ लाख नहीं होंगे, इसका मतलब 10000 लोगों में से अगर एक आदमी चाहे तो 9999 लोगों को उनकी मर्जी के खिलाफ भी रोक सकता है और ये ही कमजोरी है हमारे लोकतंत्र में, क्योंकि Violent minority overpowers silent majority... यहाँ हिंसक अल्पसंख्यक मूक बहुमत को मात देते हैं, क्या तरीका है एक पूर्ण बहुमत चुनी हुई सरकार के पास जिसको 20 करोड़ से ज्यादा वोट मिलें हों.. जो एक के बाद एक चुनाव जीत के अपनी लोकप्रियता साबित किये जा रही हो उसके पास इस तरह के आंदोलन से निपटने का एक तरीका लाठी का है.. बॉर्डर खाली कराना कोई इतना बड़ा काम नहीं है, 24 घंटे के अंदर सब साफ हो सकता है.. मुश्किल ये है की इस तरीके का फायदा आज होगा लेकिन उस जोर जबरदस्ती के फोटो दशकों तक दिखाये जाएंगे किसानों को भड़काने के लिये, लोग भूल जाएंगे की सिर्फ कुछ हज़ार किसान या अड़ियल धरने बाज लोगों को सरकार ने हटाया ताकि करोड़ों लोगों को होने वाली असुविधा से बचाया जा सके.. पर क्या सरकार का ये तरीका सही है? सही गलत तय करने के कई पैमाने होते हैं.. पर मोदी का ये ही तरीका है की सड़ा सड़ा के मारो ताकि वो खत्म भी हो जाये और कोई उसको याद भी ना रखे.. उसने शाहीन बाग के साथ ये ही किया था, याद है भाजपा के जो नेता बागी हो के अनर्गल बोलना चालू करते हैं उसके साथ भी भाजपा ये ही करती है.. शत्रुघ्न सिन्हा उसका अच्छा नमूना है.. बजाय पार्टी छोड़ने के उसने एक दो साल बकवास पार्टी के अंदर रह के चालू रखी, किसी ने ना उसको निकाला ना कुछ किया, थक के वो कॉंग्रेस, आरजेडी, समाजवादी सब पार्टियों मे भटका और आज राजनैतिक रूप से सड़ के खत्म हो गया.. खुद भी हारा, पत्नी भी हारी और बेटा एमएलए का चुनाव तक हार गया, अब उसको कोई नहीं पूछता है उसका भोंकना रिरियाना में और अब सब बिल्कुल बंद हो गया है.. ऐसा ही अरुण शोरी के साथ किया और ये ही जसवंत सिंह के साथ किया.. और तो और मोदी पाकिस्तान के साथ भी यही कर रहा है.. बजाय कोई सीधी कारवाई करने के जब तक की पाकिस्तान कोई गलत हरकत ना करे उसको अंतर्राष्ट्रीय रूप से सड़ा रहा है.. पाकिस्तानी चैनल देखो तो पता लगेगा रोज का ये ही रोना है की भारत ने हमसे हमारे दोस्त छीन लिये, OIC उनकी सुनता नहीं है सऊदी अरब, UAE ने पाकिस्तानियों का घुसना बंद सा कर दिया है, अरबों डॉलर अब अरब से नहीं आयेंगे, कर्जा मिलना अब नहीं मिल रहा है,भारत के आर्मी प्रमुख का सऊदी दौरा तो जैसे जले पे नमक छिड़कने का काम था, पता लग गया आगे आगे क्या होने वाला है, पाकिस्तान को सड़ा सड़ा के खत्म किया जाएगा... भारत जबरदस्त रूप से हथियार खरीदेगा और बनायेगा जिसको मैच करने के लिये दिवालिए पाकिस्तान को बर्बादी की कगार पे जाना पड़ेगा या चुपचाप बैठना पड़ेगा.. देश बहुत बड़ा है तो कहीं ना कहीं तो कोई ना कोई आंदोलन चलता रहेगा.. और फिर विपक्ष झुंझलाहट में खुद ही नंगा हो जाएगा, जो इस आंदोलन की आड़ में खालिस्तान और चीन की नाजायज़ औलाद कम्युनिस्टों का एजेंडा है वो ख़ुद देश के सामने होगा, ना सरकार की गति रुकेगी ना सरकार विचलित होगी.. और जहां भाजपा की सरकार है वहां ठुकाई कुटाई और दिल्ली में आप पार्टी के सरकार का आनंद वहां की जनता को तो मिलना ही चाहिए.. अभी हाल ही में जीएसटी का रिकॉर्ड आंकड़ा आया है 1,15,000 करोड़ का जो पिछले दिसम्बर, जब सब कुछ सामान्य था उससे 12% ज्यादा है.. और ये तो हालात तब है जबकि टूरीज्म, जेम, ज्वेलरी, होटल, एन्टरटेनमेन्ट, शादी, हवाई यात्रा, रेलवे आदि कई सेक्टर ऐसे हैं जिनपे अभी भी रोक लगी हुई है.. वो रोक हटने पे 10-20% और उछाल आएगा.. साफ साफ दिखता है की भारत प्रगति के रास्ते पे निर्बाध रूप से आगे बढ़ रहा है तो फिर क्यों जो सड़ सड़ के खत्म होने वाला है उसको लाठी मार के खत्म करने की बदनामी मोल लें... भाई साहब सिर खुजाते हुए झुंझला कर निकाल लिए.. बेचारे चमचों को क्या क्या सहना पड़ता है...

08 जनवरी, 2021

भाजपा की वैक्सीन

 मैंने अक्सर अपनी बातचीत में और लेख में अनेकों बार आपको बताया कि दुनिया भर के देश केवल ओर केवल व्यापार और पैसे के लिए एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, कोई किसी का सैद्धांतिक दोस्त या दुश्मन नही है,वैश्विक तीन मौलिक व्यवसाय हैं.. हथियार, फार्मा सेक्टर और तेल.. आज हम जो देखते हैं वह फार्मा युद्ध है.. भारत बायोटेक पर हमला इसी की कड़ी है, यह दूसरों की तुलना में और अधिक सस्ती कीमत पर बेहतर समाधान दे रही है। इसके कारण 187 देशों ने बुकिंग के लिए लाइन लगा दी है, दूसरा मुख्य बिंदु है कि यूपीए के समय में, भारत ने चीन को दवा बनाने की अपनी क्षमता बेच दी थी, हम चीन से 95% जीवन रक्षक दवाओं के आयात का उपयोग करते थे, मोदी सरकार के बाद, यह उलट है.. यदि भारत बायोटेक वैक्सीन सफल है और दुनिया के हर कोने में पहुँचती है, तो पूरी चीनी फार्मा योजना बर्बाद होकर जमीन पर गिर जाएगी इसलिए हो सकता है देश मे बैठे उनके सूत्रधार आने वाले दिनों में कुछ मुद्दों को इससे जोड़ कर देखें जैसे टीकाकरण के बाद एक आदमी की मौत हो गई, या फिर किसी पुरुष के शुक्राणुओं में कमी आ गयी या फिर किसी महिला का गर्भपात हो गया, तो अपना खुद का दिमाग़ लगाइये, आमतौर पर किसी भी दवाई को बनने की पूरी प्रक्रिया कुछ साल ले लेती है, उसके पीछे गहन परीक्षण एवं अनुसंधान होते है, यहाँ वो सब सीमित समय मे किया गया है.. दुनिया में कुल 190 से अधिक देश हैं.. कुल 50 के लगभग विकसित देश हैं.. करीब 20 देश अति विकसित श्रेणी में हैं.. उनमें भी 7 देश अति-अति विकसित है.. भारत एक विकासशील देश हैं.. अब ये सोचो कि कोरोना वैक्सीन मात्र 5 देशों ने बनाई उनमें से एक हमारा देश हैं.. अर्थात हमनें विकासशील देश होकर भी अति-अति विकसित देशों को पछाड़ दिया.. वह भी कोई साधारण वैक्सीन निर्माण में नही बल्कि सदी की सबसे बड़ी महामारी के वैक्सीन निर्माण में.. सभी 5 देशों की वैक्सीन में भारत की वेक्सीन सबसे अधिक प्रभावी बतायी जा रही हैं क्योंकि ये कोविड के नये स्ट्रेन पर भी कार्य करेगी.. ब्रिटेन जैसे अति-अति विकसित देश जहाँ नया स्ट्रेन हाहाकार मचा रहा हैं, वह भी भारत की वैक्सीन का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा हैं। कुल 32 छोटे-बड़े देश भारत को वैक्सीन के लिए प्री ऑर्डर का प्रस्ताव रख चुके हैं। पर कुछ लोगो को हर चीज़ में विदेशी सर्टिफिकेट चाहिए होता है, यदि वैक्सीन विदेशी होगी तो अच्छी है, कोई वैक्सीन में धर्म ढूंढ रहा है तो कोई राजनीतिक पार्टी, कोई सूअर की चर्बी तो कोई गाय का खून, अबे छोड़ो दकियानूसी बकवास, अब पूरी दुनिया में भारत और हमारे वैज्ञानिकों की उपलब्धि के नाम का डंका बज रहा है.. दुनिया भारत की और आशा भरी नजरों से टक-टकी लगाए देख रही हैं... गर्व करना सीखिए अपने देश पर.. अपने देश के नेतृत्व पर...अपने वैज्ञानिकों पर..