09 नवंबर, 2013

दिल्ली कि राजनीति

बड़े बूढ़े कहते हैं कि बाल हट, राज हट, और त्रिया हट बड़े ही दुःख दायी होते हैं।  आजकल भाजपा का भी यही हाल है।  सियासी दावपेंच खेलते खेलते वो खुद ही उसमे उलझते जा रहे हैं।  भाजपा कि अंतर कलह अब खुल कर सामने आने लगी है और मैं तो कहता हूँ कि इस बार सभी राजनितिक पार्टियां नंगी होंगी और सभी कि असलियत धीरे धीरे खुल कर सामने आ जाएगी।  भाजपा में शीर्ष पद पर आसीन लाल कृष्णा आडवाणी कि शायद अभी भी टीस बाकी है तभी ये चौकड़ी आडवाणी, सुषमा, जेटली और अनंत कुमार ने ये ठान लिया है कि इस बार के चुनाव में दिल्ली में भाजपा का बाजा बजा कर मोदी कि हवा कि हवा निकाल देंगे और लोगों कि मोदी इफ़ेक्ट को लेकर सोच गलत साबित हो जाएगी और प्रधानमंत्री पद के लिए उनका अनमने ढंग से किया गया चुनाव गलत साबित हो जाएगा।  मैने ये अभी भी कई बार देखा है कि मोदी जब भी आडवाणी के पाँव छूते हैं आडवाणी ने कभी भी उन्हे सम्मानित तरीके से बड़प्पन दिखाते हुए आशीर्वाद नहीं दिया ये करके वो अपनी गलत छवि पेश कर रहे हैं।
इस हमाम में वैसे तो सभी नंगे हैं चाहे वो भाजपा हो, कांग्रेस हो, बसपा, सपा या फिर आप, सभी जुगाड़ में लगे हैं कि किसी तरह से कोई चमत्कार कर दें। वैसे तो भाजपा ने भी अगर जीत गयी तो कोई तीर नहीं मार लेना बल्कि कांग्रेस कि की गए कारगुज़ारियों को समेटने में ही उनका कार्यकाल निकल जाएगा और फिर वही होगा ढाक के तीन पात।  समस्या दरअसल अहम् कि है जिसको टिकट मिल गया वो तो पार्टी के प्रति निष्ठावान है और जिसको नहीं मिला वो बागी हो गया अब पार्टियों काय सामने दूसरी समस्या उन बागियों को समेटने कि भी है और उनकी तो है ही जो पार्टी में रह कर ही पार्टी कि काट करते हैं।  कुछ भी हो इस बार चुनाव में उघाड़ पछाड़ अच्छे से होने वाली है लेकिन बेचारा वोटर तो पिसने के लिए ही है देखते हैं कि ऊंट किस करवट बैठता है ... हे प्रभु सभी को सद्बुद्धि देना कि समझदारी से काम लें ...

27 अक्टूबर, 2013

Elections 2013

Being a common man, sometimes i really wonder how these political parties make fun of us and how cleverly they fool us during the time of elections. every body or every party has their own offers or agendas but with conditions apply. its not only them but somehow we the people of this country too are responsible for all this blunder. its been 67 years since the independence but still after so many years of struggle we are lack of the basic necessities, the electricity, food, water, roads, medical facilities, education for all, and lots more which are the bare necessities of life..

08 सितंबर, 2013

साधू और शैतान

कोई भी धर्म इतना छोटा नहीं होता की किसी स्वयंभू धर्मगुरु के अच्छा या बुरा होने से उसकी विशालता और सर्व्भोमिकता पर उसका असर पडे। धर्म के प्रति हमारी आस्था और विश्वास या तो नहीं है या फिर सुद्रढ़ है और अगर वो नहीं है तो किसी के कहने से भी नहीं होगा और अगर मज़बूत है तो किसी व्यक्ति के बुरा होने से तो डगमगाएगा नहीं।  और ये धर्म की आड़ लेकर बुराई हमेशा से ही चलती रही है कभी राक्षस के वेश में और कभी साधू रूप में छुपे राक्षस के वेश में। सीता का हरण भी रावण ने राक्षस रूप में न करके साधू के रूप में किया था। आज भी यही सब हो रहा है। हमारे विश्वास और हमारी आस्था को एक साधू के वेश में ही लूटा जा रहा है और ये सिर्फ हमारी कमज़ोरी है क्यूंकि हम लोग ही किसी का भी बिना सोचे समझे अन्धानुकरण करने लगते हैं।  ये अनुसरण नहीं है, ये आस्था नहीं है, ये भक्ति नहीं है, ये सिर्फ देखा देखि और सुनी सुने बातों के कारण एक अन्धानुकरण है जो दुखदाई है।  बुराई जब भी सामने आती है वो अच्छाई या धर्म की आड़ लेकर आती है और हमे ढांप लेती है, हमे ऐसे में अपने विवेक से काम लेना चाहिए और इस धर्म और अधर्म के भेद को समझना चाहिए नहीं तो ना जाने कितने ही ऐसे स्वयंभू धर्मरक्षक हमारे विश्वास और हमारी आस्था का यूँ ही खून करते रहंगे। 

25 अगस्त, 2013

धर्म का राजनीतिकरण

धर्म का राजनीतिकरण करके जिस प्रकार से उसका दुरूपयोग इस देश में हो रहा है वो दुखद है। इसी राजनीतिकरण ने धर्म की परिभाषा को पूर्णतया बदल कर रख दिया है और आज ये एक पहचान न रहकर एक मुद्दा बन गया है जोड़तोड़ की राजनीति का। अब हमारी भावनायें और उससे जुडी पहचान कोई मायने नहीं रखती। हिन्दू हिन्दू नहीं रहे, मुसलमान मुसलमान नहीं रहे, सिख सिख नहीं रहे और इसाई इसाई बल्कि अब हमे वोट बैंक के तौर पर जाना जाता है। इस मंदिर और मस्जिद की लड़ाई में इंसान और इंसानियत दोनों ही मर गए हैं।  हमारे भगवान् और अल्लाह भी सोचते होंगे की हम तो एक ही थे लेकिन इन लोगों ने ही हमारे छत्तीस टुकडे कर दिए और अपनी ही लाचारी पर मन मसोस कर रह जाते होंगे
एक आम इंसान अपनी की हुई एक छोटी सी गलती के लिए कितने प्राश्चित करता है लेकिन ये राजनेता तो अपने किये हुए पाप के बोझ तले भगवान् को भी इतना दबा देते हैं की इनसे लडने की उसकी हिम्मत भी टूट जाती है और वो भी अपने आप को मजबूर और ठगा सा पाता है।  कहीं राम के नाम पे तो कहीं रहीम के नाम पे, मरता आम इंसान ही है और भगवान् आंखे मूंदे सब देखता है और सोचता है की मैं क्या बनाने चला था और क्या बना बैठा...  

24 अगस्त, 2013

महंगा प्याज़

प्याज़ न हुआ एक आफत ही हो गयी, अगर हमारे नेताओं को इतना ही ख़याल है तो फिर और भी ज़रुरत की बड़ी सारी चीजें हैं जो महंगी हैं उनकी भी दुकाने खोल लो ताकि हम लोगों को इसका फायदा मिले, पेट्रोल भी महंगा है, गैस भी महंगी है, बिजली पानी भी महंगा है, खाली प्याज़ खाकर कब तक जीयेंगे .. और इस देश मैं तो इमानदारी सबसे महंगी है और उसकी कीमत सबसे ज्यादा चुकानी पड़ती है उसकी भी किसी नेता की कोई दूकान है जहां से वो मिल सके उसकी तो सख्त ज़रुरत है...

27 मई, 2013

देश की अस्मिता पर हमला


ये भी एक विडम्बना है की नक्सालियों के द्वारा देश के कुछ नेताओं की हत्या की गयी और उसके लिए सभी छोटे से लेकर बडे नेताओं की प्रतिक्रिया फ़ौरन आ गयी, लेकिन तीन वर्ष पूर्व दंतेवाडा मै तीस सी आर पी ऐफ जवानो की नृशंस हत्या की गई किसी काग्रेसी या सोनिया गांधी के मुह से ऐक शब्द साहनभूति का कभी नही निकला। और तब  क्या ये लोग देश के नागरिक या ईंसान नही थे? नेता की मौत लोकतंत्र पर हमला नहीं है लोकतंत्र पर हमला तो रोज होता है बलात्कार की हर घटना लोकतंत्र पर हमला है, हर एक घोटाला लोकतंत्र पर हमला है !क्या दिल्ली में में 7000 बेक़सूर सिखों का हुआ नसंहार लोकतंत्र पर हमला नहीं था? लोकतंत्र बचा कहाँ है लहूलुहान पड़ा हैअपनी अंतिम साँसे गिनता हुआ। एक नेता की मौत लोकतंत्र पर हमला बिलकुल नहीं है, हमारे देश के दिग्गज नेताओं की निष्ठां क्या सिर्फ उनकी पार्टी तक सीमित है ? उनकी पार्टी पर हमला देश की अस्मिता पर हमला है और स्वयं प्रधान मंत्री और सोनिया गाँधी तक जाकर उनसे मिलते हैं, ४ दिन पहले कश्मीर मैं भी आतंकी हमला हुआ और ४सैनिक मार दिए गए लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं, नक्सली हमले लगभग रोज़ होते हैं लेकिन आज वो आतंकी हमला क्यूँ हो गया ? जब खुद को लगती है न दर्द सिर्फ तभी होता है और महसूस भी होता है  ...

04 मई, 2013

बोर्ड मेंबर का धन्दा

ये पैसा लेकर बोर्ड मेंबर बनाना कोई नयी बात नहीं है। ये सब काफी पहले से चलता आ रहा है। मैं भी कुछ ऐसे बोर्ड मेंबर्स को जानता हूँ जो यही काम करते हैं की कुछ पैसा लेकर लोगों को बेवकूफ बनाते हुए उन्हे किसी भी मंत्रालय मैं बोर्ड मेम्बर बनवा देते हैं जो की एक तरह से laisining करना ही है . आपको ढूँढने पर ऐसे ढेरों दलाल मिल जाएंगे जो की आपको लुभावने सपने दिखाते हैं जो दरअसल नेताओं के दलाल ही होते हैं। ये भी नेताओं का अपने चमचों को रिझाने और उनके द्वारा कमी करने का एक कहा जाए तो approved तरीका है। हर मंत्रालय में  एक बोर्ड बनाया जाते था जिसका अर्थ था की जनता से लिए गए या समाज के कुछ प्रठिस्तित  प्रतिनिधि लाकर उनके द्वारा सम्बंधित मंत्रालय के काम काज को सुधर जा सके और उनके सुझावों को लिया जा सके लेकिन अब ये सब न होकर ये एक हाई क्लास धन्दा बन गया है और अब बोर्ड मेम्बर बनानी के नाम पर सरेआम ये सब कुछ होता है, और हिंदुस्तान मैं सभी कुछ होता है और हमारी अंकों के सामने ही होता है लेकिन अगर कोई पकड़ा जाए तो चोर नहीं तो साहूकार तो है ही। 

22 अप्रैल, 2013

समाज का बलात्कार

दिल्ली एक ऐसी जगह है जहां सभी धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समाज, प्रान्त और प्रदेश के लोग आकर बसते हैं और दिल्ली इन सभी को सहर्ष अपना लेती है। लेकिन ये सभी लोग जो विभिन्न सम्प्रदाय और प्रान्त के होते हैं शायद इसको नहीं अपनाते और इसको अपनी कर्मभूमि न मान कर इसके साथ अन्याय करते हैं। आये दिन होने वाली घटनायें, अपराध, बलात्कार और कितने ही और जघन्य अपराध जो यहाँ आये दिन होते हैं उनका सूत्र हमेशा किसी दूसरे प्रान्त या प्रदेश से जुड़ता है और खासकर वो लोग जो अपने परिवार को छोड़ कर काम काज की तलाश में दिल्ली मे रहते हैं अपने घर परिवार से दूर और अपनी सेक्स के प्रति कुंठा के परिणामस्वरूप ऐसे किसी अपराध का हिस्सा बन जाते हैं और अपनी दबी हुई कुंठित भावनाओं को एक विभत्स रूप दे बैठते हैं जिसका शायद वो परिणाम नहीं जानते। अक्सर ये लोग समाज के उस वर्ग से आते हैं जिनको क़ानून या सामजिक सोच से कोई लेना देना नहीं होता और ये अपराध की वो श्रेणी होती है जिसमे कोई पढाई लिखाई या सज़ा का उनके लिए कोई महत्व भी नहीं रह जाता। यही हाल यहाँ की सुरक्षा व्यस्था और पुलिस का है, क्यूंकि इस महकमे के अधिकतर अफसर और कर्मचारी भी दूसरे प्रान्त प्रदेश के होते हैं और उनमे भी लोगों के प्रति और समाज के प्रति एक अलग दृष्टिकोण होता है। और विभिन्न प्रान्त के होने के कारण उनमे आपसी सामंजस्य की कमी रहती है जिसका खामियाजा एक आम इंसान को भुगतना पड़ता है। इस सबके लिए व्यस्था बदलाव की ज़रुरत है निचले और बडे दोनों स्तर पर लेकिन जो बदलाव करने बैठे हैं वो भी इसी मिश्रित व्यस्था का हिस्सा है जो अपने आप को एक भारतीय न मान कर विभिन्न जाती और धर्म मैं अपने को बांधे बैठे हैं और जब तक ये सिलसिला चलेगा तब तक रोज़ यूँ ही बलात्कार होते रहंगे। बलात्कार समाज का भी, कमज़ोर व्यस्था का भी, और इंसान का भी .... 

16 मार्च, 2013

सरकार की प्रतिक्रिया

कितने कमाल की बात है की भारत सरकार ने एक बार फिर पाकिस्तान की कडे शब्दों मैं निंदा की है संसद में भी सर्वदलीय पाकिस्तान को कडे शब्दों में जवाब दिया गया है  और लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने तो ये भी कहा है की कश्मीर पूरा हमारा है पाक अधिकृत कश्मीर भी, कमाल की बात है न की हम बातें तो करते हैं, दावे भी करते हैं लेकिन अन्तराष्ट्रीय नक्शों में कश्मीर आज भी पाकिस्तान के पास है और इसका कोई विरोध नहीं करता, यहाँ तक की अरुणाचल भी चीन के अधीन दिखाया जाता है लेकिन हम सिर्फ कागजों में ही विरोध कर सकते हैं क्यूंकि हम असल में कागज़ी शेर ही हैं। पाकिस्तानी हम पर बार बार हमला करते हैं, हमारे सैनिकों के सर काट कर ले जाते हैं, हमारे घर मैं बैठे हुए उनके चमचे उनका खुल कर साथ देते हैं लेकिन हमारे नेता उन सैनिकों की शहादतों की चाँद रुपियों में कीमत लगा कर बात को दबा देते हैं और येही इस देश की विडम्बना है की एक चूहा सा देश जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है वो भी हमारे कंधे पैर हाथ रख कर हमारे कान मैं मूत जाता है और हम न्यूज़ चैनलों पर बैठ कर बड़ी बड़ी बातें कर लेते हैं और बयां दे देते हैं और घर बैठ कर अपने कश्मीर को अपने नक्शों मैं देख कर खुश हो लेते हैं घर बैठ कर और खुद नक्शा बना कर तो मैं पूरी दिल्ली का मालिक हूँ पर दरअसल मैं कश्मीर वो त्रिशंकु बन गया है जो कहीं का भी नहीं रहा है ...

15 मार्च, 2013

16 की उम्र मैं सेक्स

ये भी बदनसीबी है इस देश मैं की आपको वोट डालने का अधिकार, ड्राइविंग करने का अधिकार, शादी करने का अधिकार ,शराब पीने का अधिकार और यहाँ तक की एक वयस्क फिल्म देखने का अधिकार भी 18 साल की उम्र के बाद मिलता है लेकिन सरकार ये समझती है की इन सभी से ज़याद जल्दी और ज़रूरी सेक्स करना है जिसके लिए आप सिर्फ 16 साल के होने चाहियें ... यानी एक 16 साल के बच्चे को सेक्स की समझ और ज़रूरत बाकी सभी चीज़ों से पहले है, सरकार के पास ये रोज़ रोज़ के बलात्कारों का ये जवाब है। अब ये समझ नहीं आता की हम लोग किस भारत मैं रहते हैं और इसकी सभ्यता और संस्कृति का बेडा गर्क क्यूँ होता जा रहा है ..

10 मार्च, 2013

बॉक्सर विजेन्द्र की वाह वाही

नाम और शोहरत होना अच्छी बात है लेकिन उसे कायम रखना एक काबिलियत और समझदारी है। कुछ लोग ये समझते हैं की उस शोहरत की आड़ में वो कुछ भी ऐसा कर सकते हैं जो समाज या क़ानून की नज़र में अपराध हो लेकिन वो उसकी परवाह नहीं करते। ऐसे लोग जो समाज के और भविष्य के लिए एक आदर्श हो सकते हैं वो अगर किसी अपराधिक साज़िश का हिस्सा हो सकते हैं उन्हे सख्त सज़ा मिलनी चाहिए। देश के एक नामी खिलाड़ी का नाम मादक पदार्थों की स्मगलिंग मैं आना एक साज़िश भी हो सकता है लेकिन सिर्फ ये सोच कर इस बात को छोड़ा नहीं जा सकता की इसके पीछे एक बड़ा नाम है। पहले भी हुआ है की अर्जुन पुरूस्कार विजेता खिलाडी इस तंत्र का हिस्सा पाया गया था। और इस मामले मैं भी जो सबूत मिले हैं वो अपने आप मैं किसी दिशा की तरफ हे इंगित करते हैं लेकिन शायद ये भ्रष्ट तंत्र हे है की किसी भी रसूकदार और बडे नेता, अभिनेता, या खिलाडी का इतनी जल्दी कुछ नहीं होता, वर्ना आम आदमी तो चोरी बाद मैं होती है पकड़ा पहले जाता है।

29 जनवरी, 2013

हमारी न्याय व्यस्था

न्याय करते समय किये गए जुर्म की विभत्सता को देखना चाहिए, करने वाले की मानसिकता को देखना चाहिए, उसको करने का मकसद देखना चाहिए, और उस जुर्म को देखना चाहिए जो हुआ है। अपराधी किसी भी उम्र का हो सकता है, क्या अगर कोई 17 साल और 6 महीने का होने पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध और वो भी इतनी विभत्सता के साथ किया गया हो एक बच्चे की मानसिकता का हो सकता है? ये प्रश्न है न्याय प्रणाली से की क्या सिर्फ अगर कोई 6 महीने छोटा है तो क्या 6 महीने बाद उसको अचानक अक्ल आ जाएगी और वो बालिग़ हो जाएगा या फिर हमे ये देखना चाहिए की वो किस विकृत मानसिकता वाला है की उसने वो कृत्य  किया जो एक वयस्क भी इतने घिनोने तरीके से न करे। अब अगर वो केवल 3 साल की सज़ा पाकर 3 साल बाद और भी विकृत मानसिकता को लेकर इसी समाज मैं फिर से लौट कर आएगा और फिर किसी दामिनी को लूटेगा और भी ना जाने क्या कर बैठे जिसका खामियाजा हम लोगों को भुघतना पड़ेगा। शायद न्यायालय का ये फैसला किसी और को भी ये शह  दे की क़ानून आखिर क्या बिगाड़ सकता है और जाने कितने और अपराध और अपराधी खुलकर सामने आयें ... 

09 जनवरी, 2013

हमारी इज्ज़त का कत्लेआम

एक कहावत है की सांप कभी अपनी फितरत नहीं छोड़ता चाहे उसे कितना भी दूध पिला लो, अब ये सब पढ़ और देख सुन कर बड़ा ही दुःख होता है की न तो इस देश में नागरिको की और न हे देश के रक्षको की कोई भी कीमत है। अगर कोई कीमती है तो सिर्फ इस देश के स्वयंभू नेता, अभिनेता, संत और उनके परिवारजन जो आम नागरिको की श्रेणी मैं नहीं आते। देश की सुरक्षा मैं तैनात भारतीय सेना की एक पेट्रोलिंग पार्टी पर पाकिस्तानी सेना के द्वारा घात लगा कर हमला करना और बर्बरतापूर्वक उनका सर काट कर साथ ले जाना इंसानियत और हवानियत की हद है। हमारे देश की सभी राजनैतिक पार्टियां चाहे वो कांग्रेस ,SP,BSP,JDU,NCP,DMK,TMC,RJD जेसी सभी पार्टी के नेताओं को बधाई जो पुरजोर कोशिश करते हैं की वो पाकिस्तान जैसे अपने बिच्च्ड़े हुए भाई के साथ मेल मिलाप रखें, BCCI,राजीव शुक्ला ,भारत की क्रिकेट टीम को भी वहुत वहुत वधाई जो ये सोचते हैं की अगर हिन्दुस्तान में  क्रिकेट का भविष्य है तो वो सिर्फ पाकिस्तान के साथ ही है और वो उनको बुलाकर जीत भी तोहफे के रूफ मैं परोस कर देते हैं। यहाँ तक की दिल्ली में हो रहे मैच के दोरान भी पाकिस्तानी सेना की बॉर्डर पर गोलीबारी जारी थी और हम उनके साथ खेलकर खुश हो रहे थे। देश का मीडिया भी दोगले पने  से खिलाडियों को स्टार बना रहा था परन्तु देश के असली स्टार उसी दुश्मन से लोहा ले रहे थे। 
आखिर हम किस देश मैं जी रहे हैं, जहां आज भी अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे कट्टरपंथी नेता बन कर जहर उगल रहे हैं और देश को बांटने की सोच रखते हैं और सरेआम धमकी देते हैं। हम तो घिरे हुए हैं दुश्मनों से घर मैं भी और बाहर भी। और जब अपने ही रक्षंहार और पालन हार दुश्मन हो जायें तो बहार वालों से क्या गिला? आखिर ऐसी वो कोन सी चीज़ है या सत्ता का वो कोन सा नशा है जो इंसान और इंसानियत की कीमत हे ख़तम कर देता है। जब हमे मालूम है की ये एक ऐसा दुश्मन है जो कभी नहीं सुधर सकता फिर भी हम उसके लिए पलक पावडे बिछा कर रखते हैं, आखिर ऐसा कोन सा काम है हमारा जो उसके बिना नहीं चल सकता। सरकार की ऐसी ही बेरुखी की वजह से आज देश का युवा सेना मैं भर्ती नहीं होता और देश प्रेम और सेवा को वो जस्बा आज भटक गया है। सेना की ये मजबूरी हो जाती है की भारत एक ऐसा देश है जिसने अपने इतिहास मैं कभी किसी देश पर अतिक्रमण नहीं किया और सेना इसका पालन करने के लिए मजबूर है वर्ना अपने साथियों को यूँ बर्बरतापूर्वक कत्ले आम देख कर क्या उनका खून नहीं खोलता और क्या वो नहीं चाहते की उनके घर मैं घूस कर मार जाए, पर हमारी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति हमे ये करने की इजाज़त नहीं देती लेकिन वो कहती है की मेहमाननवाज़ी मैं लगे रहो , सहो और चुप रहो घर के अन्दर भी और घर के बाहर भी ...