2019 के लोकसभा चुनाव के समय सातों सीटें जीतने का दावा करने वाले केजरीवाल ने हारने के बाद एक बयान दिया था कि " हम 48 घंटे पहले तक सातों सीटें जीत रहे थे लेकिन अचानक मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ बंटने से सीन बदल गया" ये जो आज दिल्ली में भटके हुए नौजवान दंगा और आगजनी कर रहे हैं ये उसी ध्रुवीकरण का नतीजा है, इसकी शुरुआत इन्होंने संसद में कैब का विरोध करके की, इसकी एक अलग रूपरेखा तैयार की और फिर साजिशन दिल्ली चुनाव से पहले मुसलमानों को आप नेताओ द्वारा भड़काना, बरगलाना और दंगे करवा कर उनके समर्थन में आना ये सब उसी साजिश के तहत हुआ... प्लान तो इनका ये है कि इस दंगे में कुछ विशेष वर्ग के लोग हताहत हो और फिर उन्हें भी मुआवजे और सरकारी नौकरी के साथ पुचकारा जाए, ताकि मुस्लिम वर्ग का सिम्पथी वोट हांसिल किया जा सके.. यूँ तो कांग्रेस भी इसमें उनके साथ ही है क्योंकि चाहे कितना भी केजरीवाल अपनी सूरत दिखा दिखा कर या मुफ्तखोरी का लालच देकर दिल्ली वालों को लुभाने की कोशिश कर ले या फिर अब प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकार का सहारा ले ले किन्तु अंतर्मन में वो भी जानता है कि इस बार सरकार में वापसी इतनी आसान नही है, इसीलिए वो एक बार फिर दबे पांव कांग्रेस के कंधे पर चढ़ने की कोशिश में लगा हुआ है और इस समय तो उसकी धुर विरोधी शीला दीक्षित भी अब नही है... यानी कांग्रेस और केजरीवाल दिल्ली में भाजपा को दूर रखने और अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाये रखने की कवायद में लगे हुए है। अब ये दिल्ली की जनता को समझना है कि ये दंगो की राजनीति हमे कहाँ लेकर जा रही है, साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति में पारंगत कांग्रेस भी केजरीवाल की आड़ में अपनी खोई ज़मीन तलाश रही है, अमानतुल्ला खान, इसहाक खान, मतीन अहमद, आसिफ खान जैसे लोग तो केवल इनका मोहरा हैं, और इनके प्यादे ये दंगाई जिनको लड़ने के लिए आगे किया जा रहा है और पकड़े जाने पर जमानती वकीलों की फौज दी जा रही है, किन्तु दिल्ली का अपना एक कल्चर है... "सानू की" और "सब चंगा सी"...
21 दिसंबर, 2019
07 दिसंबर, 2019
बलात्कारियों को फांसी दो
हर साल औसतन 32000 बलात्कार देश मे होते है, उनमें से कुछ ही बदनसीब हैं जिनकी लड़ाई हमारे सामने आ पाती है, अनेक केस ऐसे हैं जिनमे बलात्कार की शिकार महिला का कानूनी प्रक्रिया से भी बलात्कार होता है, मानसिक शोषण होता है, शरीर के साथ साथ आत्मा तक छलनी हो जाती है, हमारी लचर औऱ लाचार कानूनी प्रक्रिया, न्याय प्रणाली, पैसे के लिए बिकते गवाह, सबूत, वकील, पुलिस सब मिलकर न्याय प्रक्रिया पर हमारा विश्वास तोड़ देते है, देश के इतिहास में आजतक केवल एक बलात्कारी को फांसी दी गयी थी, जानते हो कब ? 15 साल पहले 2004 में धनंजय चटर्जी को, क्या उससे पहले या बाद में बलात्कार नही हुए ? जिस निर्भया के नाम से सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाया, निर्भया फण्ड बनाया आज भी वो निर्भया स्वयं अपने लिए न्याय के इंतज़ार में बैठी है, फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई गई किन्तु केवल न्याय प्रणाली अपने आप मे क्या करेगी, जब राज्य सरकारें बलात्कारियों के मानवाधिकारों के नाम पर फ़ाइल रोक के बैठ जाये, अपराध के मामले में पीड़ित से ज़्यादा अपराधी आश्वस्त होता है कि वो कानून की पेचीदगियों से बच जाएगा। आज जब पुलिस किसी अपराधी का एनकाउंटर करती है तो देशव्यापी खुशियां मनाई जाती है, देश की जनता अपराधी की धर्म, जाति को छोड़कर उसकी विकृत मानसिकता के कारण उससे घृणावश अपने आक्रोश को खुशियों में व्यक्त करती है, ऐसा ही तब जब किसी नेता को थप्पड़ पड़ता है तो होता है, आखिर क्यों ? क्योंकि अपराधियो का ऐसे सरे आम मारा जाना और नेताओं का थप्पड़ खाना दोनो ही आम जनता के आक्रोश को दर्शाते हैं, और इसके लिए हमारी कानूनी प्रक्रिया का दुरुस्त होना ज़रूरी है, जब एक आतंकवादी के लिए, या लोकतंत्र खतरे में होने की दुहाई देकर गठबंधन की सरकारें बनाने के लिए आधी रात को भी मिलार्ड को उठा कर कोर्ट खुलवाई जा सकती है तो न्याय पर भरोसा बनाये रखने के लिए आम लोगों के लिए भी इस प्रक्रिया को बदलने की ज़रूरत है, तभी समाधान होगा, अन्यथा देश को तालिबानी कानून की ज़रूरत महसूस होने लगेगी और सरकारों व न्यायपालिका से भरोसा उठ जाएगा। आज यदि एक निर्भया, या एक प्रियंका का विभत्स बलात्कार और हत्या हमारा इतना खून उबाल सकती है, सरकार के खिलाफ विरोध और विद्रोह प्रदर्शन करवा सकती है, तो सोचो देश के बंटवारे के समय लाखो निर्भया और प्रियंकाओं का बलात्कार हुआ, उन्हें नोचा गया, लूटा गया और ज़िंदा जला दिया गया... उंस समय के लोगों का भी खून खौला था और फिर भी लोग पूछते हैं नाथूराम गोडसे को गुस्सा क्यों आया था ? गांधी की हत्या क्यों हुई थी...
03 दिसंबर, 2019
एक और निर्भया
देश दुनिया मे रोज़ रोजाना हज़ारों लाखों शारीरिक व मानसिक बलात्कार होते हैं, शरीर के साथ साथ आत्मा को तार तार कर दिया जाता है, विभत्स, नृशंस और क्रूर तरीके उस बलात्कारी हत्यारे की विभत्स मानसिकता को दर्शाते हैं की समाज और कानून का डर उनके ज़ेहन में है ही नही, आखिर क्यों हम इतने लचर हो जाते हैं क्यों हमारी राजनीतिक मजबूरियां, कानूनी पेचीदगियां, बड़ी बिंदी वाले लोगों की अमानवीयता या टुकड़े टुकड़े गैंग की असहिष्णुता इस संवेदनशील मुद्दे पर हावी हो जाती है। निर्भया कांड के समय एक आक्रोश पूरे देश ने देखा था, किन्तु आज भी उसकी आत्मा इंसाफ के इंतज़ार में तड़प रही है, बलात्कारी का धर्म, जाति एवं उम्र ना देख कर उस जुर्म की वीभत्सता को देखा जाना चाहिए, किन्तु निर्भया के सबसे क्रूर हत्यारे को हमारी सरकार 10000 रु एवं सिलाई मशीन दे कर पुनः ऐसे राक्षसों को समाज मे जगह देते है। आज जब वैसे ही सैकड़ो बलात्कारों में से एक डॉ प्रियंका की बर्बरता पूर्वक बलात्कारियों ने ज़िंदा जलाकर हत्या कर दी तक फिर से वही रोष देश मे फैला है, किन्तु कोई कोई बदकिस्मत प्रियंका ही किस्मत से इंसाफ की लड़ाई लड़ पाती है, कोई कोई अनु दुबे ही अपनी अंतरात्मा की आवाज़ बुलंद कर पाती है, किन्तु यदि किसी एक निर्भया को भी इंसाफ मिला होता तो आज शायद ये प्रियंका ना होती, शायद कठुआ या उन्नाव ना हुए होते, शायद नरेला या रांची ना हुए होते, दिल्ली देश की राजधानी है जहां की राजनीति पूरे देश पर असर दिखाती है, किन्तु यहीं के नेता अपनी राजनीतिक मेहत्वकांगशाओ के लिए आज तक भी निर्भया के दोषियों की फ़ाइल दबा के रखते हैं, एक तरफ केजरीवाल एक हत्यारे बलात्कारी को सिलाई मशीन और 10000 रु देता है तो दूसरी तरफ उसी की स्वाति मालीवाल अनशन के नाटक करती है, क्या यही संवेदनशीलता है इन दो कौड़ी के नेताओ में, आज मुद्दा गरम देख कर निर्भया के एक बलात्कारी की फांसी की सज़ा के लिए लंबित फ़ाइल को पास किया जाता है, किन्तु देश को तोड़ने वाले टुकड़े टुकड़े गैंग को आज भी ये जनाब संजीवनी दिए बैठे हैं, क्या हमारी फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ऐसे काम करती है ? सरकारें बनाने, आतंकियों को छुड़वाने, नेताओ की जमानतें लेने के लिए आधी रात भी कोर्ट खुलती है किंतु किसी निर्भया, नैना साहनी, गुड़िया, या प्रियंका के लिए नही...
30 नवंबर, 2019
राजनीती में नैतिकता एवं अनैतिकता
कमाल की राजनीति है, अहम, अहंकार और महत्वकांक्षाओं के चलते नेता, इंसान और इंसानियत से परे एक परालौकिक सी दुनिया गढ़ लेते हैं, हर किसी को ये भ्रम हो जाता है कि वो ही राजनीति का किंग मेकर है, आम जनता अपने बीच से ही आम लोगो को अपना प्रतिनिधि चुनती है किन्तु यही प्रतिनिधि जीतते ही स्वयं को उसी जनता का भाग्यविधाता समझ बैठते है, फिर होता है लोकतंत्र के नाम पर खेल, सत्ता का खेल, राजनीतिक उठा पटक सत्ता की मलाई का, कीमत लगाई जाती है, बड़े बड़े पांच सितारा होटलों में, रिसोर्ट में अय्याशी के अड्डे खोले जाते है, बड़ी बड़ी लक्सरी गाड़ियां तो छोड़ो बस भी मर्सेडीस की लायी जाती हैं, कौन क्या पद लेगा, कौन सा कमाई वाला मंत्रालय कौन लेगा, किसका घोटाला दबाया जाएगा, किसका चिट्ठा खोला जाएगा.. भाजपा सत्ता प्राप्त कर नहीं पाई मुझे उसके दुःख से ज्यादा भाजपा ने अंत तक सत्ता गलत हाथों में न जाये उसके लिए जो संघर्ष किया उसका गर्व है.. शरद पवार ने अजित पवार के द्वारा डील करने की ही कोशिश की थी कि 37000 करोड़ के सिचाई घोटाले, सुप्रिया सुले ओर पवार की जांच एजेंसियों के द्वारा जांच को रोका जाए, लेकिन मोदी ने जांच एजेंसियों पर दबाव बनाने से मना कर दिया, इसीलिए अजित मीटिंग में नही गया, सोशल मीडिया में अफवाह उड़वाई गयी कि केस में क्लीन चिट दी गई है, लेकिन फिर स्वयं ED ने साफ कर दिया कि ऐसा कुछ नही होगा, जांच अपने तरीके से आगे बढ़ेगी, उसी के बाद अजित पवार ने इस्तीफा दिया और उसी मर्यादा को रखते हुए फडणवीस ने भी इस्तीफा दे दिया ये नैतिकता है... कूटनीति को कुत्तानीति कहकर उसका उपहास उड़ाने वालों की नैतिकता आज पुनः हिलोरे मारने लगी है आज सबको नैतिकता, आदर्श व् शुचिता जैसे शब्द अचानक से बड़े प्रिय लगने लगे हैं, रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम द्वारा बाली पर बाण चलाने के बाद यही सब कुछ बाली को भी याद आया था और उसने भी भगवान श्रीराम से नैतिकता की दुहाई देकर उनके आचरण पर प्रश्न किया था, तब श्रीराम का उत्तर था कि तुमने कब नैतिकता का पालन किया जो आज तुम उस नैतिकता की दुहाई दे रहे हो तुमने अपने भाई का राज्य छीन लिया उसकी पत्नी तक छीन ली और उसे राज्य से विस्थापित होने के लिए विवश कर दिया इसके बाद तुम्हारे द्वारा नैतिकता की बात करना पाखंड से अधिक कुछ नहीं.. फिर महाभारत में भी युद्ध की समाप्ति के बाद जब भीष्म बाणों की शैया पर थे और कृष्ण उनसे मिलने आए तो भीष्म से भी रहा ना गया और उन्होंने कृष्ण से प्रश्न कर ही दिया कि जिस प्रकार से मुझे, गुरु द्रोण, कर्ण और दुर्योधन को रणभूमि से हटाया गया क्या वह उचित था.. तब कृष्ण का उत्तर था आप अपनी प्रतिज्ञा की डोर से बंधे हुए हस्तिनापुर सिंहासन के साथ खड़े रहकर कौरवों द्वारा भीम को विष देने पर, लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मारने का षड्यंत्र रचने पर, द्यूतक्रीड़ा में छल से पांडवों का सब कुछ छीन लेने पर, कुलवधू द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित करने पर और पांडवों को जबरन अज्ञातवास भेजने पर आप नैतिकता की अवहेलना कर उन्हें कौरवों के संग खड़े रहे अपनी प्रतिज्ञा से बड़े होने के कारण युद्ध भी आपने उसी अनैतिकता के प्रतीक कौरवों की ओर से किया ऐसे में नैतिकता के पालन का भार केवल पांडवों के शीश पर ही क्यों हो ? ऐसे अनेको उदाहरणो से इतिहास भरा पड़ा है, अटल बिहारी वाजपेई ने भी नैतिकता का पालन करते हुए मात्र 1 वोट से अपनी सरकार गिरते हुए देखी थी और भाजपा ने तो उसके बाद कई राज्यों और छेत्रिय दलों व् उनके नेताओं से धोखे खाए.. परंतु भाजपा जहां पर सत्ता में आई वहां विकास किया, केंद्र में आई तो राष्ट्र हित के कार्य किए, अटल बिहारी वाजपेई की सरकार हो या नरेंद्र मोदी की, एक भी घोटाले का दाग नहीं लगा, जबकि अन्य सरकारों ने घोटाले कर देश के खजाने लूटने में कीर्तिमान रच दिये, वहीं भाजपा में पूरे देश का विद्युतीकरण किया 10 करोड़ शौचालय बनवा दिए, सस्ते इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई, गरीबों को आवास दिया, उनके घर गैस के चूल्हे लगवाए, आतंकवाद पर लगाम लगाई शत्रु पाकिस्तान को आर्थिक कंगाली की ओर धकेल दिया, पिछली सरकारों में 10% से अधिक रहने वाली महंगाई दर को नियंत्रित कर 4% तक लेकर आए, 11वें नंबर की अर्थव्यवस्था रही भारत को पांचवें नंबर पर ले आये, विदेशी मुद्रा भंडार अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कड़े व् सकारात्मक निर्णय लिए, 370 जैसा कलंक हटाया, राम मंदिर के निर्माण हेतु अपना अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में उतार दिया और 500 सालों से संघर्ष कर रहे हिंदूओं के लिए राम मंदिर प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया, परंतु आज भी इन सभी सकारात्मक कार्यों की अवहेलना कर नैतिकता की बीन बजा रहे लोग भाजपा द्वारा पीडीपी संग गठबंधन पर छातियों पीटते दिख जाते हैं, और आज उन्हें वो शिवसेना नैतिक लग रही है जो भाजपा संग गठबंधन में चुनाव लड़ने के बाद मुख्यमंत्री पद की हवस में कांग्रेस और एनसीपी संग सरकार बना रही है, परंतु वह भाजपा अनैतिक लग रही है जिसने उसी एनसीपी संग गठबंधन कर सरकार बना ली, ऐसी दोहरे मापदंड वाली "नैतिकता" कहाँ से लाते हो महाराज ? जब सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से हाथ मिलाया था तब कांग्रेस और गांधी समेत कई अन्य लोगों ने भी ऐसे ही नैतिकता के प्रश्न उठाए थे, सुभाष चंद्र बोस का उत्तर था "अनैतिक रूप से भारत पर कब्जा कर बैठे अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्र कराने हेतु और भारत के हित के लिए तो मैं शैतान से भी हाथ मिला सकता हूं.... आज नैतिकता की दुहाई दे रहे उन महान विश्लेषकों, राजनीतिक विचारकों, बुद्धिजीवियों और ज्ञानियों को मेरा सुझाव है कि सत्ता में रहने पर भाजपा सरकार द्वारा किए गए कामों को देख लो, और अन्य सरकारों के किये कृत्यों से उनकी तुलना कर लो, उसके पश्चात ही नैतिकता की बीन बजाओ...
12 नवंबर, 2019
शिवसेना की राजनीती
शिवसेना जो आज अपनी विचारधारा से उलट सत्ता के लालच में केवल मुख्यमंत्री पद के लिए इतना बड़ा समझौता करने जा रही है, हिंदूवादी विचारधारा और हिन्दू राष्ट्र के सपने दिखाने वाली पार्टी के नेता आज जाकर अजमेर शरीफ की दरगाह पर चादर भी चढ़ा रहे है और साथ साथ राम मंदिर बनाने का दावा की कर रहे हैं। अटल आडवाणी की बीजेपी को बाल ठाकरे कमला बाई बोलता था ,एक छेत्रिय पार्टी का छुटभय्या नेता एक राष्टीय पार्टी को बोलता था "कमला बाई वही करेगी जो मैं चाहूंगा " ये था एक उदंड नेता की भाषा शरीफो की पार्टी बीजेपी के लिए ,दरअसल ठाकरे ने राजनीती मराठी टी स्टाल से शुरू कर हिन्दू ढाबे तक की ,बीजेपी चुकी हिन्दुओ की पार्टी मानी जाती है ,ठाकरे उससे हमेशा चिढ़ता रहा उसको हमेशा लगता रहा मेरे नकली हिन्दू ढाबे पे खतरा केवल असली हिन्दू पार्टी बीजेपी ही पैदा कर सकती है, उसी मानसिकता के शिकार उसकी औलादे भी है और वो वही कर रही है जो उन्हें बिरासत में मिली है , जिस दिन उद्धव ने ममता के साथ कोलकत्ता में मंच साझा किया था उसी दिन गठबंधन तोड़ लेना था , बिना जनाधार के नेतावो को सर पे चढ़ाना मतलब कोठे वाली के सामने असहाय हो जाना है, ये वही बब्बर शेर ठाकरे थे जो पश्चिम सभ्यता का पक्ष लेते हुए माइकल जैक्सन का स्वागत में समारोह करते थे ,परन्तु वेलेंटाइन का खुलेआम विरोध करते थे और ऊपर से शिव सैनिको का उत्पाद ? जावेद मियादाद को घर पर बुलाकर सायं कालीन भोजन दे सकते थे ,लेकिन पाकिस्तानी टीम को इंडिया में खेलने के नाम पर पिच तक खुदवा दे। सत्तर के दशक में किसान आंदोलन जोर शोर से था ,सूती मिलो के मालिको पर मजदूरो का शोषण उग्र था ,दुनिया जानती है किसान नेता कृष्णा देशाई की हत्या शिव सैनिको ने की ,क्या ये देश हित और किसान हित की बात थी ? इमरजेंसी में कांग्रेश की सहायता इन्होने खुलेआम की ,जबकि ये काम किसी विचार धरा से प्रेरित नहीं थी ,बल्कि इन्हें डर था की कही इंदिरा हमें जेल में ना डाल दे | हजारो राजनेता ,सैकड़ो पत्रकार ,लाखो लोग जेलों में ठूस दिए गए लेकिन डरपोक बब्बर शेर इंदिरा चालीसा पढ़के अपनी खाल बचाता रहा .. कथनी करनी दिखती है ,जवाब मांगे जायेगे तुलना की जायेगी.. एक कायर ,बुजदिल जो मुम्बई से बाहर डरके नहीं निकला उसको शेर क्यों बोला गया ?
06 नवंबर, 2019
गुड पॉलुशन बैड पॉलुशन (Good pollution Bad Pollution)
हम लोग समस्याओं का अपनी सुविधानुसार वर्गीकरण कर लेते हैं, जैसे गुड टेररिज्म और बैड टेररिज्म की श्रेणी है। बेड टेरेरिज्म उस आतंकवाद को कहा जाता हैं, जब आतंकी हमले अमरीका और यूरोपियन देशों पर हो। तब समस्त दुनिया आतंक के खिलाफ एकजुट हो जाती हैं। जहाँ उन हमलों के सूत्र मिलते हैं, उन संगठनों एवं पोषक देशों पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिये जाते हैं। तथा बिना किसी किन्तु परंतु के उन हमलों को मानवता के विरुद्ध मानकर उनपर कठोर कदम उठाए जाते है। क्योंकि वो "बेड टेरेरिज्म" हैं। इसके उलट गुड टेरेरिज्म से आशय उस आतंकवाद से है, जिसमें पीड़ित देश भारत और एशियन, अफ्रीकन जैसे देश हो। अतः इन देशों पर हुए आतंकी हमलों पर दुनिया तत्काल प्रतिक्रिया नही करती। खासतौर से भारत जैसे देशों में इन हमलों को जस्टिफाई किया जाता हैं। मसलन बुरहान गरीब था जैसे किन्तु परन्तु किये जाते हैं। क्योंकि ये "गुड टेरेरिज्म" हैं। और इसी दोगलेपन की वजह से आज भी आतंकवाद जयों का तयों कायम है।
अब ऐसा ही होता हैं "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन".. जिसके कारण लगातार तीसरे वर्ष भी दीपावली के पटाखों पर बैन होने तथा इस वर्ष दीपावली पर फूटने वाले पटाखों में 40% कमी होने के बाबजूद प्रदूषण घटने की बजाए और बढ़ गया। गुड और बेड में आप समस्या की जड़ पर प्रहार नही करते अपितु टहनियों पर वार करके समय और संसाधन दोनो ही बर्बाद करते हैं। समस्याओं का वृक्ष सदैव हरा भरा रहता हैं। पिछले तीन वर्षों से भारत मे प्रदूषण के नाम पर यही गुड पॉल्यूशन, बेड पॉल्यूशन वाला खेल खेला जा रहा हैं। जिसमें प्रदूषण चिंतक, पर्यावरण प्रेमी से लेकर पूरा तंत्र शामिल हैं। उदाहरणार्थ दीपावली के पटाखो से होने वाला प्रदूषण बेड पॉल्यूशन हैं। अतः दीपावली आते ही समस्त प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों द्वारा कोर्ट मे याचिकाएं लग जाती हैं। देशभर में दीपावली पर पटाखे न फोड़े के अभियान चलने लगते हैं। समस्त जनता और सूचना तंत्र भी एकजुट हो जाते हैं। अतः मिलार्ड भी सभी मुकदमे छोड़ तत्काल दीपावली पर पटाखे बैन कर देते हैं। क्योंकि ये "बेड पॉल्यूशन" हैं। इसके ठीक विपरीत क्रिसमस, नए साल पर फूटने वाले पटाखे एवँ दीपावली के आसपास खेतो में जलने वाली पराली से होने वाला प्रदूषण "गुड पॉल्यूशन" हैं। अतः इन्हें जस्टिफाई किया जाता हैं। मसलन क्रिसमस आस्था का सवाल हैं। पराली जलाना मजबूरी हैं इत्यादि।उल्लेखनीय हैं कि बेड पॉल्यूशन पर तर्क दिया जाता हैं:- जान ही नही रहेगी तो दीपावली क्या मनाओगे। लेकिन गुड पॉल्यूशन पर ये तर्क गायब हो जाता हैं। गुड और बेड के इस खेल में मूल समस्या कही खो जाती हैं। जैसे ठीक दीपावली पर दिल्ली मे प्रदूषण बढ़ने का एक बड़ा कारक पराली भी था। अतः पटाखे और पराली दोनो पर बैन होना चाहिये था। पराली जलाने के विकल्प खोजने थे। लेकिन पराली गुड पॉल्यूशन हैं। अतः सरकार द्वारा हलफनामे मे दिल्ली प्रदूषण इमरजेंसी का कारण पराली बताये जाने के बाबजूद, मिलार्ड तीन दिन से कानो में रुई और मुँह में दही ठूँस कर बैठे है। क्योंकि यह गुड पॉल्यूशन हैं।
प्रदूषण पर कैसे नियंत्रण किया जाता हैं ये चीन से सीखिए। एक समय चीन के शहर सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिने जाते थे। लेकिन चीन ने प्रदूषण को गुड और बेड में नही बांटा। उन्होंने जड़ पर प्रहार किया। शंघाई जैसे सर्वाधिक प्रदूषित शहर में उद्योगों को शहर से बाहर किया। फैक्ट्रीज में फिल्टर युक्त चिमनिया लगाई। पुराने वाहनों को तत्काल बन्द किया। साथ ही टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर शहर मे कुतुबमीनार से भी ऊँची चिमनी बनाई। जिससे धुंआ बाहर निकल गया। जिसका नतीजा ये निकला कि आज बीजिंग, शंघाई जैसे शहरों में प्रदूषण में आश्चर्यजनक रूप से कमी आ चुकी हैं। वही दूसरी औऱ दिल्ली मे प्रदूषण रोकथाम के नाम पर हम मात्र दीपावली के पटाखे बैन कर,अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर प्रसन्न हो रहे है। नतीजा आज दिल्ली गैस का चेम्बर बन चुकी हैं। अतः यदि सच मे हम दिल्ली के प्रदूषण के प्रति गम्भीर हैं, हम उसे कम करना चाहते है, तो सबसे पहले हमें राजनीतिक उठा पटक छोड़ कर प्रदूषण को "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन" में बांटना बन्द करना होगा। दीपावली के साथ बिना किसी किन्तु-परन्तु के सभी त्योहारों क्रिसमस, नए साल, शब ए बारात पर पटाखे बेन करना होंगे। शीघ्र-अतिशीघ्र पराली जलाने का विकल्प ढूंढ जलाने पर बैन लगाना होगा। तथा चीन जैसे कोई टेक्निकल उपाय अपनाना होगा। अन्यथा प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों के गुड पॉल्यूशन और बेड पॉल्यूशन के एजेंडे में उलझे रहे तो दिल्ली हमारे हाथ से निकल जायेगी...दिल्ली मर रही है....
अब ऐसा ही होता हैं "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन".. जिसके कारण लगातार तीसरे वर्ष भी दीपावली के पटाखों पर बैन होने तथा इस वर्ष दीपावली पर फूटने वाले पटाखों में 40% कमी होने के बाबजूद प्रदूषण घटने की बजाए और बढ़ गया। गुड और बेड में आप समस्या की जड़ पर प्रहार नही करते अपितु टहनियों पर वार करके समय और संसाधन दोनो ही बर्बाद करते हैं। समस्याओं का वृक्ष सदैव हरा भरा रहता हैं। पिछले तीन वर्षों से भारत मे प्रदूषण के नाम पर यही गुड पॉल्यूशन, बेड पॉल्यूशन वाला खेल खेला जा रहा हैं। जिसमें प्रदूषण चिंतक, पर्यावरण प्रेमी से लेकर पूरा तंत्र शामिल हैं। उदाहरणार्थ दीपावली के पटाखो से होने वाला प्रदूषण बेड पॉल्यूशन हैं। अतः दीपावली आते ही समस्त प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों द्वारा कोर्ट मे याचिकाएं लग जाती हैं। देशभर में दीपावली पर पटाखे न फोड़े के अभियान चलने लगते हैं। समस्त जनता और सूचना तंत्र भी एकजुट हो जाते हैं। अतः मिलार्ड भी सभी मुकदमे छोड़ तत्काल दीपावली पर पटाखे बैन कर देते हैं। क्योंकि ये "बेड पॉल्यूशन" हैं। इसके ठीक विपरीत क्रिसमस, नए साल पर फूटने वाले पटाखे एवँ दीपावली के आसपास खेतो में जलने वाली पराली से होने वाला प्रदूषण "गुड पॉल्यूशन" हैं। अतः इन्हें जस्टिफाई किया जाता हैं। मसलन क्रिसमस आस्था का सवाल हैं। पराली जलाना मजबूरी हैं इत्यादि।उल्लेखनीय हैं कि बेड पॉल्यूशन पर तर्क दिया जाता हैं:- जान ही नही रहेगी तो दीपावली क्या मनाओगे। लेकिन गुड पॉल्यूशन पर ये तर्क गायब हो जाता हैं। गुड और बेड के इस खेल में मूल समस्या कही खो जाती हैं। जैसे ठीक दीपावली पर दिल्ली मे प्रदूषण बढ़ने का एक बड़ा कारक पराली भी था। अतः पटाखे और पराली दोनो पर बैन होना चाहिये था। पराली जलाने के विकल्प खोजने थे। लेकिन पराली गुड पॉल्यूशन हैं। अतः सरकार द्वारा हलफनामे मे दिल्ली प्रदूषण इमरजेंसी का कारण पराली बताये जाने के बाबजूद, मिलार्ड तीन दिन से कानो में रुई और मुँह में दही ठूँस कर बैठे है। क्योंकि यह गुड पॉल्यूशन हैं।
प्रदूषण पर कैसे नियंत्रण किया जाता हैं ये चीन से सीखिए। एक समय चीन के शहर सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिने जाते थे। लेकिन चीन ने प्रदूषण को गुड और बेड में नही बांटा। उन्होंने जड़ पर प्रहार किया। शंघाई जैसे सर्वाधिक प्रदूषित शहर में उद्योगों को शहर से बाहर किया। फैक्ट्रीज में फिल्टर युक्त चिमनिया लगाई। पुराने वाहनों को तत्काल बन्द किया। साथ ही टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर शहर मे कुतुबमीनार से भी ऊँची चिमनी बनाई। जिससे धुंआ बाहर निकल गया। जिसका नतीजा ये निकला कि आज बीजिंग, शंघाई जैसे शहरों में प्रदूषण में आश्चर्यजनक रूप से कमी आ चुकी हैं। वही दूसरी औऱ दिल्ली मे प्रदूषण रोकथाम के नाम पर हम मात्र दीपावली के पटाखे बैन कर,अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर प्रसन्न हो रहे है। नतीजा आज दिल्ली गैस का चेम्बर बन चुकी हैं। अतः यदि सच मे हम दिल्ली के प्रदूषण के प्रति गम्भीर हैं, हम उसे कम करना चाहते है, तो सबसे पहले हमें राजनीतिक उठा पटक छोड़ कर प्रदूषण को "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन" में बांटना बन्द करना होगा। दीपावली के साथ बिना किसी किन्तु-परन्तु के सभी त्योहारों क्रिसमस, नए साल, शब ए बारात पर पटाखे बेन करना होंगे। शीघ्र-अतिशीघ्र पराली जलाने का विकल्प ढूंढ जलाने पर बैन लगाना होगा। तथा चीन जैसे कोई टेक्निकल उपाय अपनाना होगा। अन्यथा प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों के गुड पॉल्यूशन और बेड पॉल्यूशन के एजेंडे में उलझे रहे तो दिल्ली हमारे हाथ से निकल जायेगी...दिल्ली मर रही है....
02 नवंबर, 2019
दिल्ली का प्रदूषण
दिल्ली में आज जीने के लिए हर सांस की कीमत चुकानी पड़ रही है, इस दम घोंटने वाले #प्रदूषण से शारीरिक,मानसिक और आर्थिक तीनो रूप से नुकसान हो रहा है, सरकारें जानती है किंतु जागती नही हैं। केले के छिलके को देख कर फिर फिसलन पड़ेगा वाली प्रवर्ति आ चुकी है किंतु वह छिलका ज्यों का त्यों बना हुआ है। #दिल्ली जैसे बड़ा सा शहर, चारों तरफ धूल,मिट्टी, धुआं,गंदगी, करोड़ो गाड़िया,धुँआ उगलती लाखों फैक्टरियां,हर तरफ AC, जेनेरेटर और इंजन, पावर प्लांट्स, बड़े बड़े लैंडफिल साइट, खुले हुए गंदे नाले, हर सौ कदम पर खुली कंस्ट्रक्शन साइट, और उस पर सोती और खाती हुई हमारी दिल्ली की सरकार, लेकिन पॉल्युशन के लिए बेचारा #हरियाणा और #पंजाब का किसान जिम्मेदार। पूरी दिल्ली के प्रदूषण के लिए केवल #पराली जलाना ही जिम्मेदार है, क्या केवल आरोप प्रत्यारोप की #राजनीति करने से इस सुरसा रूपी समस्या का हल है। आज दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप के 15 तो केवल हमारे है, अब इस पर गर्व करें या शर्म से डूब मरें ? कहने को विशाल आसमान तो है, उसमे अरबों तारें भी है लेकिन दिखाई नही देते। प्रदूषण से तो आंखों की चमक तक फीकी पड़ने लगी है। दिल्ली में डीटीसी कर्मचारियों पर काम ना करने और हड़ताल करने के वदले #केजरीवाल साहब उनपे अस्मा लगा कर बर्खास्त कर रहे हैं, लेकिन अगर मेरे नेता भी नालायक और नकारा हो तो मैं उस पर कौन सी धारा लगाऊं, 307 ? हमारी जान जोखिम में डालने के लिए और हमारे जीवन से खिलवाड़ करने के लिए। शायद केजरीवाल के मुंह से ये सुनना बाकी रह गया है कि इसके लिए भी भाजपा और संघ ज़िम्मेदार है, पर शायद हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं इस जैसे निकम्मे को दिल्ली का मालिक बनाने के लिए... कायदे से तो केजरीवाल पर #ASMA भी लगना चाहिए और धारा 307 के अंतर्गत दिल्ली वासियों की हत्या के प्रयास का मामला भी दर्ज होने चाहिये.. हर साल ये प्रदूषण के नाम पर पराली पराली खेलना शुरू कर देता है, जबकि दिल्ली के प्रदूषण में पराली केवल 4% का योगदान देती है लेकिन बाकी का 96% ये भाई साहब खुद पाल कर बैठे हुए है, उसका कोई समाधान इनके पास नही है, बस 2 घंटे के प्रदूषण स्तर को कम करने के लिए 75000 लीटर पानी छिड़काव करने में बर्बाद किया जाता है, कोई ठोस हल नही ढूंढा जाता, हर साल से समस्या यूं ही सुरसा की तरह विकराल रूप धर कर मुँह बाए खड़ी हो जाती है लेकिन इस नालायक को तो चुनाव लड़ना है, चंदा इक्कट्ठा करना है और दो कौड़ी की राजनीति करनी है, वैसे भी मुफ्तखोर दिल्ली को प्रदूषण भी तो खैर मुफ्त ही मिल रहा है लेकिन उनकी कीमत बहुतों को चुकानी पड़ रही है...हे ईश्वर अब तू ही हमे और हमारे बच्चो को बचा...
19 अक्टूबर, 2019
वीर सावरकर का माफीनामा
वीर #सावरकर के बारे में देश के कुछ #कुशिक्षित और #असभ्य राजनीतिक व्यवसायी उन्हें #गांधी जी की हत्या और 1921 में उन्हें अंग्रेजों द्वारा कारामुक्ति के आदेश को दुष्प्रचारित कर रहे हैं... इन लोगों को यह शायद ही ज्ञात हो कि वीर सावरकर को किस कारण 2 आजीवन कारावासों का तानाशाही आदेश सुनाया गया था, वीर सावरकर की पुस्तक "भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम" ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई और उन्हें #ब्रिटेन में सक्रिय इंडिया हॉउस की #क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के आरोप में 2 आजीवन कारावासों का तानाशाही आदेश सुनाकर 1910 में #अंडमान के #सेल्युलर जेल में रखा गया और 1920-21 के आते आते वहां की यातनाओं से कारावासित #स्वतंत्रता सेनानियों की मृत्यु होने लगी... इसी अवधि में पूरे देश में व्यापक जन #आंदोलन, मजदूरों की हड़ताल हो रही थी... #रौलेट एक्ट के विरोध में पूरे देश में आक्रोश और आंदोलन सशक्त हो चुका था... 1919 में #जलियांवालाबाग में हज़ारों लोगों के नरसंहार से पूरा देश उबल रहा था... सिर्फ 1921 में ही 400 हड़ताले हो चुकी थीं, तब अंग्रजों की सरकार ने अपनी जान बचाने के चक्कर में और #भारत में व्यापक विद्रोह से बचने के लिए सेल्युलर जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों से उन्हें बिना साक्ष्य दंडित करने की अपनी गलती स्वीकार करते हुए #clemency के एक ऐसे औपचारिक फॉर्म पर हस्ताक्षर लिया जो यह साबित करने के लिए किसी कैदी से लिया जाता था कि उसे गलती से दंड दे दिया गया था... clemency को समझने के लिए #न्यायशास्त्र का इतिहास पढ़िए कि clemency की कितनी परिभाषाएं हैं..... क्योंकि, clemency एक शब्द नहीं न्यायशास्त्र का एक पारिभाषिक शब्द है... देश कुशिक्षित राजनीतिक व्यवसायियों को यह जानना चाहिए कि सेल्युलर जेल में कारावासित क्रांतिकारियों के अपराध को अंग्रेज़ सरकार साबित ही नहीं कर पाई थी इसलिए एक बहाने से #वीरसावरकर और अन्य क्रांतिकारियों को स्वयं क्षमा मांगते हुए मुक्त कर दिया क्योंकि यही ऐसा नहीं होता तो 1921 के आंदोलन क्रम #चौरीचौरा ही नही भारतीय वीरों ने वायसरॉय के घर को भस्म कर दिया होता, इसलिए वीर सावरकर पर बोलते हुए बकिए मत, अपनी औकात देख लीजिए कि आप हैं कौन और आपके आराध्यों ने देश के साथ क्या क्या किया था...
16 अक्टूबर, 2019
आस्था या अन्धविश्वास
आजकल हम लोग आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी के युग मे यदि अपनी आस्था और विश्वास को अपनी धार्मिक परंपराओं एवं संस्कृतियों से जोड़ते हुए कोई कार्य करते हैं तो आज उसे अंधविश्वास की संज्ञा दी जाती है, किन्तु मेरा मानना है कि विश्वास या भक्ति या आस्था बंद आंखों से इसीलिए किया जाता है है क्योंकि इसमें पूर्ण समर्पण है, जहां शंका होगी वहां भक्ति और आस्था डगमगा जाएंगे । आधुनिक चिकित्सा के एक बड़े मंदिर सर् गंगा राम हॉस्पिटल के सुपर स्पेशलिटी विभाग में बना ये सर्व धर्म पूजा स्थल शायद एक अपवाद है, जहां हमारी अत्याधुनिक चिकित्सा प्रणाली भी उसी आस्था, विश्वास एवं भक्ति की उंगली पकड़े जीवन मृत्यु के संघर्ष में आशा की एक किरण देखती है। विभिन्न धर्म गुरुओं, भगवान, ईश्वर, गॉड, का समन्वय एवं एक स्थान पर बिना किसी भेद के एक आलौकिक ऊर्जा एवं शक्ति प्रदान करता है, एवं जीवन चक्र में आगम से प्रस्थान तक यूँ ही थामे रहता है, परंतु कुछ लोगों के दो निम्बू से ही दिमाग और दांत दोनो खट्टे हो जाते हैं...
07 अक्टूबर, 2019
डेंगू का प्रकोप एवं प्रदुषण
समस्या विकट है, बरसात खत्म हो चली हैं और डेंगू का प्रकोप मुँह बाए खड़ा है, विचारणीय ये है कि आज भी दुनिया मे सबसे ज़्यादा मौतें मच्छर के काटने से ही होती हैं, बित्ति भर का मच्छर एक परमाणु हमले जितनी प्रजाति को नष्ट करने की क्षमता रखता है, यूँ तो सरकारें प्रयास कर रही हैं किंतु कुछ सकारात्मक होता दिख नही रहा, वैसे देखा जाए तो श्री लंका जैसा छोटा सा देश जो चारो तरफ पानी से घिरा हुआ है अपने को डेंगू मुक्त एवं मच्छर मुक्त घोषित कर चुका है, तो भारत मे भी राजनीतिक होड़ के चलते इसके नाम पर कुछ उल्टा पुल्टा होता ही रहता है, अब ये फोगिंग ही ले लो, वैसे तो प्रदूषण से दिल्ली का दम घुट रहा है, प्रदूषण के नाम पर राजनीतिक बयानबाज़ी भी जारी है, कहीं ओड इवन, तो कहीं यातायात नियंत्रण के नाम पर तमाशा, अंततः दिल्ली की बदनसीबी है घुट घुट के जीना, ये फोगिंग करने के नाम पर तो सरकारी कर्मचारी आम जनता की आंखों में धूल के रूप में धुंआ झोंक रहे हैं, प्रदूषण की दुहाई देने वाली सरकारें खुद डीजल के धुएं से मच्छर मारने और डेंगू से लड़ने का दावा करते हैं और हमारे घरों में घुस कर एक बार मे इतना धुंआ छोड़ जाते हैं जो शायद हम सड़क पर चलते हुए साल भर में भी नही लेते, और अनजान और बेबस जनता इस पर भी ताली पीटती है और छुटभैये नेता अपनी वाह वाही लूटते हैं, क्यों हम कुछ सकारात्मक नही करते, अरे अपने घर के आस पास पानी जमा मत होने दो ना, यदि होता है तो उसके लिए सरकार से लड़ो, भगाओ इन फोगिंग के नाम पर तमाशा करने वालों को... आदतें बदलो
25 सितंबर, 2019
Father Of India
#FatherOfIndia का विशेषण नरेंद्र मोदी को कैसे बोल पड़े राष्ट्रपति ट्रम्प इसको समझने की आवश्यकता है, वो इसलिए क्योंकि सारे अमरीकी अखबारों में हमारे प्रधानमंत्री जी के लिए एक यह भी मुख्यशीर्षक था.. PM Modi's down to earth gesture at Houston Airport is winning hearts... मोदी जी जब ह्यूस्टन में एयरपोर्ट पर उतरे और वहां पंक्तिबद्ध स्वागतार्थियों से मिलने लगे तो उन्हें एक गुलदस्ता भेट किया गया जिससे एक फूल की छोटी टहनी खिसक कर ज़मीन पर गिर पड़ी..उन्होंने तुरंत स्वयं झुककर बाएं हाथ से उसे उठाया जिसे साथ चल रहे सुरक्षाकर्मी को दे दिया.. यह दृश्य अमरीका के लिए असाधारण और अकल्पनीय था और इस दृश्य को विभिन्न सकारात्मक व्याख्याओं के साथ अमरीकी अखबारों में प्रकाशित किया गया.. इस समाचार ने संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में आए हुए सभी राष्ट्राध्यक्षों को सम्मोहित किया... और उस तर्कसंगत सम्मोहन के उद्रेक में राष्ट्रपति ट्रम्प ने सत्य उद्गार व्यक्त किया कि "Modi is Father of India ..." यहां यह ध्यान रखने की बात है कि इण्डिया का अर्थ भारत नहीं है... इंडिया , भारत में रहने वाली एक विचारधारा का नाम है जो स्वयं को सदा ही ऊंचा समझता है, जिसे फूलों के कुचले जाने की कोई चिंता नहीं रहती ... जो फूल ज़मीन पर गिरे तो गिरे , हुआ तो हुआ के कुविचारों से मदांध रहता है .. किन्तु हमारा भारत तो भारत माता है .. जो स्वच्छता को हर जनमानस का नैतिक अधिकार समझती है, जो देश की उन्नति और विकास को प्राथमिकता देती है, जो एक नए भारत की कल्पना करती है, राष्ट्रपति ट्रम्प के इस उद्गार से जिसे सीखना है वह सीखे, जिसे रोना ही है वह रोये...
05 अगस्त, 2019
कश्मीर और 370
देश में आज एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया, भारत का सिरमौर जम्मू एंड कश्मीर जो देश का अभिन्न अंग होते हुए भी अपने आप में भिन्न था, वो आज एक संविधान, एक झंडे और एक विधान से इस देश से जुड़ गया। अनुच्छेद 370 एवं 35A को हम कुछ यूँ भी समझ सकते हैं की अब आपके हमारे जैसे बाहरी लोग जम्मू कश्मीर में बिजनेस कर सकेंगे. जम्मू-कश्मीर में वोट का अधिकार सिर्फ वहां के स्थाई नागरिकों को था, अब दूसरे राज्य के लोग यहां वोट कर सकेंगे। चुनाव में उम्मीदवार भी बन सकते हैं.देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी पा सकता है.देश के किसी हिस्से का नागरिक वहां जमीन खरीद सकता है यानि वहां बस सकता है। देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी पा सकता है. स्कॉलरशिप हासिल कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी जम्मू-कश्मीर में सीधे नहीं लागू होते थे। अब इसमें कोई रुकावट नहीं होगी। भारत का कोई भी नागरिक चाहे वो देश के किसी भी हिस्से में रहता हो अब उसे कश्मीर में स्थायी तौर पर रहने, अचल संपत्ति खरीदने का अधिकार मिल जाएगा। अब तक 35ए की वजह ये नहीं हो पा रहा था, जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाया गया है, यानि अब जम्मू कश्मीर विधानसभा दिल्ली जैसी विधानसभा होगी, राज्य का हेड गवर्नर होगा, पुलिस जम्मू कश्मीर के सीएम के बजाए राज्यपाल को रिपोर्ट करेगी यानि लॉ एंड ऑर्डर केंद्र के पास होगा। अब तक कानून व्यवस्था जम्मू कश्मीर सरकार के पास थी.जम्मू कश्मीर राज्य को बर्खास्त करने की पॉवर राष्ट्रपति के पास नहीं थी ,लेकिन इस अनुच्छेद के हटने के बाद यह भी संभव होगा। सूचना का अधिकार कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं था, लेकिन धारा 370 हटने के बाद RTI कानून लागू हो जाएगा, J&K में अब तिरंगे का अपमान करना अपराध होगा, अब तक इसपर किसी तरह की सजा नहीं थी। अब जम्मू-कश्मीर का अपना झंडा और अपना संविधान नहीं होगा. जम्मू-कश्मीर ने 17 नवंबर 1956 को अपना संविधान पारित किया था। जिसे अब खत्म कर दिया गया है..... यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी यानी किसी भी पाकिस्तानी को आसानी से जम्मू में रहने का लायसंस मिल जाता था. अब ये मुमकिन नहीं होगा. पाकिस्तानी, पाकिस्तानी ही रहेगा। जम्मू-कश्मीर की महिला अगर किसी दूसरे राज्य के स्थायी नागरिक से शादी करती हैं तो उसकी और उसके बच्चों के लिए अब कश्मीरी नागरिकता जैसे अड़चने नहीं होंगी, क्योंकि अब कश्मीरी नागरिकता जैसी चीज़ नहीं होगी. और सूबे से दोहरी नागरिकता भी खत्म हो जाएगी। संसद से पारित कानून अब सीधे लागू होंगे, अब तक भारतीय संसद के अधिकार जम्मू कश्मीर को लेकर सीमित थे, अब तक ये होता था कि डिफेंस, विदेश और वित्तीय मामले को छोड़कर अगर संसद कोई भी कानून बनाती थी तो वो वह जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता था, ऐसे कानून को लागू कराने का प्रावधान यह था कि इसके लिए पहले संसद द्वारा पारित कानून को जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा में पास होना जरूरी था. ये अधिकार राज्य को 370 के तहत ही मिले हुए थे. अब ये खत्म हो गया है। संविधान के मुताबिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण मिलेगा, कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था, लेकिन धारा 370 हटने के बाद से लाभ भी मिलना शुरू हो जाएगा। शिक्षा का अधिकार और CAG का कानून भी यहां लागू नहीं था जो अब तत्काल प्रभाव से लागू हो जाएगा। राज्य की विधानसभा का कार्यकाल अब पांच साल का होगा, जो पहले छह साल का था.राज्य की विधानसभा का कार्यकाल अब पांच साल का होगा, जो पहले छह साल का था। मतलब एक देश, एक संविधान, एक कानून.....
19 जुलाई, 2019
भाजपा का सदस्यता अभियान, कमल, कीचड और दलदल
भाजपा का सदस्यता अभियान चल रहा है, आप दो तरह से सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं, एक तो घर बैठे आप 8980808080 पर मिस्ड कॉल दे कर, दूसरा भाजपा को, मोदी जी को दिन रात कोस कर, गालियां दे कर, भाजपा कार्यकर्ताओं को कुत्ता बता कर, मशरूम से जवानी की कहानी सुना कर भी, और मज़े की बात इस सबके लिए आपका पार्टी में स्वागत स्वयं पार्टी के वरिष्ठ नेता माला पहना कर करते हैं... बस समस्या उस बेचारे कार्यकर्ता के लिए है जो पार्टी से जुड़ता है क्योंकि वो अपने, अपने परिवार, देश व समाज के अच्छे भविष्य की कल्पना करता है, सरकार से उम्मीदें पालता है, वो पार्टी में चुपचाप अपना किरदार निभाता है क्योंकि उसने कोई विषय उठाया तो शकुनि और यदि कोई सुझाव दिया तो विभिक्षण कहलाता है, उस बेचारे को नेता बनना तो दूर नेता चुनने का भी अधिकार नही, ना मान, ना अपमान और ना ही स्वाभिमान की चिंता, बस आला कमान ने जिसकी ओर उंगली उठाई वही सिरमौर, यदि आपमे ये सभी गुण हैं तो आप भी पार्टी के सदस्य बन सकते है, उसके लिए आपको कोई मिस्ड कॉल भी नहीं करना...
29 जून, 2019
कांग्रेस की सच्चाई
कुछ लोगों को #कांग्रेस को लेकर एक भ्रम है, ये आज की कांग्रेस की तुलना उस #नेहरू #गांधीकी कांग्रेस से करते हैं जिसने #आज़ादी की लड़ाई लड़ी, किन्तु इस फर्क को भी समझना जरूरी है कि 1969 में #इंदिरागांधी को मूल कांग्रेस से बाहर निकाल दिया गया था जिसके बाद इंदिरा ने कांग्रेस (आई) का गठन किया था, असली और पुरानी कांग्रेस पार्टी ने तो 1977 में #जनसंघमें विलय कर लिया था जो आज की #भाजपा है, तो परोक्ष रूप से भाजपा भी आज़ादी की लड़ाई में अपने अस्तित्व से पहले ही भागीदार रही है और कांग्रेस (आई) नही... इसका उदाहरण आप यूं भी समझ सकते हैं कि यदि आप मे से किसी कांग्रेसी महानुभाव ने कभी कांग्रेस के अपने #संस्थापक सदस्यों दादा भाई #नौरोजी, ऐ ओ #ह्यूम या फिर #दिनशावाचा की कोई फ़ोटो देखी व इनके संदर्भ में कोई आयोजन देखा कभी ? कांग्रेस पार्टी मूलतः कोई #राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित नही हुई थी, ये कुछ कुलीन वर्ग के लोगों का संगठन था जो 1857 की क्रांति के बाद #ब्रिटिश सरकार की नीतियों को देश की जनता के समक्ष रख सके एवं भारत को ब्रिटिश उपनिवेश के अंतर्गत बनाये रखने में सक्षम हो। और उस कांग्रेस पार्टी का उद्देश्य ही ब्रिटिश राज के अंतर्गत ही स्वशासन करना था ना कि पूर्ण #स्वराज्य और यही से कांग्रेस में पहला #विभाजन शुरू हुआ था...
20 जून, 2019
भारत माता की जय
आज #सांसदों के #शपथग्रहण समारोह के दौरान जब #संसद में #वन्देमातरम, #भारत माता की जय के नारे लग रहे थे तो पीड़ा हो रही थी, जिस माँ #भारती के छोटे छोटे लाल #बिहार में तड़प तड़प कर जान दे रहे हो वो स्वयं कितनी #पीड़ित और #दुखी होगी, छोटे छोटे सैकड़ों #नौनिहालों की #मौत पर दुख से उनकी छाती फटी जा रही होगी और ये सांसद एक बनावटी #मुखौटा लगा कर उसी रोती बिलखती मां का जय जय कार कर रहे हैं। ये उस राज्य का हाल है जिसके सर्वे सर्वा #सुशासन बाबू के नाम से विख्यात है, किन्तु सुशासन का नंगा नाच इन #हस्पतालों की #कुव्यस्था में खुल के दिखा । #चिकित्सा जगत में चमत्कारों का दावा करने वाले आज इस बीमारी का ना तो नाम ही जानते है और ना कारण तो इलाज तो दूर की बात है। अबकी बार जब वन्दे मातरम और भारत माता की जय बोलो तो #भारत की उन माताओं की पीड़ा भी देखना और यदि संवेदनायें बाकी हो तो #महसूस भी करना जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े गंवा दिए...
19 जून, 2019
मुखर्जी नगर का काण्ड
आखिर हम समाज को और समाज हमे किस और लेकर जा रहा है, क्यों हम अपनी संवेदनाओं में कुतर्कों के साथ संगठनों के प्रति संवेदनहीन हो जाते हैं। समुचित इलाज ना मिले तो डॉक्टर का सर फोड़ दो ? ओर यदि पुलिस कार्यवाही करे तो तलवार से काट दो ? फिर तो उन लोगो को कश्मीर के पत्थरबाजों का भी समर्थन करना चाहिए जो हमारी सेना पर हमला करते है, फिर तो उन आतंकियों का भी समर्थन करना चाहिए जो अपने धार्मिक मकसद के लिए निर्मम हत्याएं करते है। हम दरअसल अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर सही गलत का आंकलन कर लेते हैं, हमे सबसे कमज़ोर पुलिस लगती है इसीलिए आज कल, कोई तलवार से मारे ,कोई शराब की बोतल दे मारे लेकिन ग़लती पुलिस की हमेशा क्यूँकि इन लोगों का कोई संघठन नहीं है ,ये वोट बैंक नहीं है, इनको पिटा हुआ देख कर ख़ुश होने वाले सोच कर देखे अगर ये ना हो तो हालत क्या होगी ? केवल डॉक्टर जान नहीं बचाते पुलिस भी दिन रात हमें बचाती हे लेकिन वोट की राजनीति के चलते इन लोगों को आसानी से शिकार बना दिया जाता हे। मुझे पता है कई नकारात्मक टिप्पणी होगी लेकिन कल अगर सरदार की जगह मुस्लिम होते तो ?? सोच कर बताना सारा सोशल मीडिया लग जाता देश को बचाने में । धर्म का सम्मान हो ,क़ानून का सम्मान हो ,केवल बलि का बकरा ना बनाया जाए पुलिस को अगर ये लोग नहीं होंगे तो आप मैं और राजनीति करने वाले कोई नहीं होंगे। हमे अपनी सुरक्षा एजेंसियों का सम्मान करना ही होगा, चलो कोई ये बताएगा की उस ऑटो ड्राइवर ने गाड़ी में तलवार किस लिए रखी हुई थी ? क्या वो व्यक्ति अपराधी मानसिकता का था ? या कोई राजनीतिक संगरक्षण प्राप्त गुंडा ? एक ऑटो ड्राइवर के समर्थन में सैकड़ों लोगों ने एकत्र होकर तोड़फोड़ की, पुलिस अफसरों को मारा, क्या बिना किसी संगरक्षण के ? जब यही ऑटो वाले सड़क पर बेतरतीब तरीके से चलते हैं, घंटो जाम की स्तिथि पैदा करते हैं तब हम ही इन्हें गालियां देते है और पुलिस व्यस्था को कोसते है और जब पुलिस कार्यवाही करती है तो पुलिस पर झुकने का दबाव बनाया गया किन्तु घायल पुलिस वालों के प्रति कोई संवेदना नही ? क्यों हम अपराधियो को किसी धर्म के चश्मे से देखते है, बंगाल में हमलावरों को मुस्लिम और तृणमूल का होने का लाभ दिया गया, क्यों ? अब जो धर्म विशेष पर मुझे ज्ञान देने की सोच रहे है वो कृपया स्वयं का आंकलन करें और ये अवसरवादी राजनीति का शिकार होने के बजाए सही गलत का आंकलन करे ताकि समाज मे सुरक्षा एजेंसियों, सरकारी तंत्र एवं न्यायप्रणाली पर विश्वास बना रहे....
05 जून, 2019
विश्व पर्यावरण दिवस
आज विश्व पर्यावरण दिवस है, आज गहन विचारणीय विषय है जल संकट एवं धरती का बढ़ता तापमान। हमारी अपनी ही गलतियों और लापरवाही का नतीजा है ये की आज धरती जल रही है और सूख रही है। आधुनिकरण एवं औद्योगिकरण के चलते हमने वन संपदा, पहाड़ों, नदियों, यहां तक कि प्राणवायु तक का दोहन किया। हमने अपने बच्चो को कभी इनके महत्व को नही समझाया अपितु उनके ही भविष्य को बर्बाद किया। आज भी अगर हम नही चेते तो सब खत्म हो जाएगा, प्रकृति को विकृत करके हम अपने संसाधनों के बल पर नही जी सकते, हमे प्रयास करना होगा, जल संचयन का, हम आज पौधा लगाएंगे तो कम से कम 5 वर्षो में वो वृक्ष बनेगा, केवल पौधे ही ना लगाएं अपितु उनका पालन पोषण भी करें। पीने लायक पानी का संचयन करें, सरकार को भी जलाशयों को संगरक्षित करना चाहिए, अरबो लीटर नदियों का पानी समुद्र में जा मिलता है, यदि नदियों को आपस मे जोड़ा जाए तो सूखी नदियों में उस पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है, कृषि एवं पशुपालन को छोटी नहरों से जोड़ा जा सकता है। प्रयास करें, मानव होने के नाते, मानवता के नाते...
13 मई, 2019
आएगा तो मोदी ही
मैं कहता हूँ चलो मत मानो कि इस व्यक्ति ने कभी चाय बेची होगी, यह भी मत मानो कि इनकी माँ ने कभी किसी दूसरों के घरों में बर्तन साफ़ किए होंगे, मत यकीन करो कि यह व्यक्ति कभी हिमालय में रहा होगा, यह भी मत मानो कि इस व्यक्ति ने #राजनीति में यह ऊँचाई हासिल करने के लिए पार्टी के कार्यक्रमों में कुर्सियां और फर्श बिछाए होंगे, पर यह तो मानोगे न कि यह व्यक्ति एक निहायत ही गरीब और पिछड़े परिवार में पैदा हुआ, यह भी कि इस व्यक्ति के परिवार और रिश्तेदारों में किसी का भी राजनीति और व्यापार से कोई वास्ता नहीं था, यह भी कि यह व्यक्ति किसी महँगे स्कूल और कॉलेज में पढ़ने नहीं गया और यह भी कि इनका कोई गॉड फादर नहीं था, जो इन्हें उंगली पकड़ कर जिन्दगी की गुजर बसर करने लायक मुकाम पर पहुँचाता. बावजूद इसके, आप इस व्यक्ति का #आत्मविश्वास, #इरादे, #हौसला और विजन देखो कि सार्वजनिक जीवन में कभी उसने ख़ुद को दीन-हीन, गरीब, पिछड़ा, अशिक्षित और दयनीय नहीं लगने दिया है. जीवन में जो हासिल किया, वह अपनी मेहनत और जिद से हासिल किया। इनके इरादों में जो टोन आज से 27 साल पहले थी, वही आज भी है. सोचने का ढंग जो तब था वह आज भी है, और यही वजह है कि बिना #हावर्ड और #ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से डिग्री या डिप्लोमा लिए यह व्यक्ति एक गरीब मजदूर से लेकर #अमेरिका के राष्ट्रपति तक से #आत्मविश्वास से लबरेज होकर मिलता है. जो अपने परिधान और चाल-ढाल से देश और दुनिया में मजबूत, समृद्ध और उम्मीदों से भरे #भारत का प्रतिनिधित्व करता है, जो भाषा, ज्ञान और तकनीक की हर उस विधा के साथ आगे बढ़ता है, जिसे अपनाने में एक सामान्य इंसान को संकोच होता है. उन्होंने भारत की राजनीति के शीर्ष नेतृत्व को #ट्विटर, #फेसबुक, #इन्स्टाग्रामजैसे सोशल मीडिया माध्यमों में आने को विवश किया, वे अपने समय से चार कदम आगे चलते हुए आज टेली प्रोम्प्टर से बोलते हैं, वे तकनीक के माध्यम से मंच पर टहलते-टहलते देश के करोड़ों लोगों से संवाद स्थापित कर लेते हैं, वे देश के #गरीब, #किसान, #मजदूर, #छात्र, #महिलाओं और #पेशेवरों से टेली कांफ्रेंस के माध्यम से सीधा संवाद करते हैं, सवालों के जवाब देते हैं, वे #ब्लॉग लिखते हैं, लगातार टीवी और अखबारों को इंटरव्यू देते हैं, वे #रेडियो पर #मन की बात करते हैं और अब #नमो टीवी भी। पर वे जो नहीं करते हैं, वह भी जानने योग्य है...वे भरी जनसभा में अपने कुर्ते की फटी जेब में हाथ डालकर नहीं दिखाते हैं, वे कागज़ में देखकर भाषण नहीं पढ़ते, वे बुलेट प्रूफ शीशे के पीछे से भाषण नहीं देते, वे #विश्वेश्वरैया पर अटकते नहीं हैं, वे अपनी रैलियों के बाद बांस-बल्लियों से कूदने का स्टंट नहीं करते, वे सिक्यूलर नेताओं की तरह #गंगा -जमनी तहजीब में नहीं बल्कि एक मंजे हुए नेता की तरह बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहते हैं. वे अपने किसी भी कार्यक्रम में बेतरतीब दाढ़ी, बाल और कपड़ों के साथ नहीं जाते और यह भी कि वे राजनीति में टाइम पास के लिए नहीं बल्कि एक निश्चित मिशन के लिए हैं, इसलिए उनकी राजनीति में ब्रेक, इंटरवल और अवकाश नहीं होता और यही वजह है कि अपने पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने 15 साल सरीखा काम करके दिखाया है, इसलिए आगामी नतीजों से अनजान मेरा यह मानना है कि मोदी ने भारत के लिए पांच साल में जो किया है, वह अगले पचास साल तक भी भुलाया नहीं जा सकता, वहीं उनको मिलने वाला एक और कार्यकाल भारत के लिए एक #स्वर्णिम युग को सुनिश्चित करने वाला होगा, यह व्यक्ति अपने काम, समय और योजनाओं को लेकर कितना जागरूक और पाबन्द है, उसकी झलक आप हर उस कार्यक्रम में देख सकते हैं, जिसमें इनकी उपस्थिति होती है. #मोदी जी की अपने हर एक्ट में किसी बारीक नक्काशी की तरह पकड़ रहती है, वे बेशक हार्ड टास्क मास्टर हैं, वे जितना आगे समय से खुद रहते हैं, उतना ही आगे देश को ले जाना चाहते हैं, तब भी कहूँगा कि मोदी भारत नहीं है, मोदी के पहले भी देश चल रहा था, मोदी नहीं होंगे तब भी देश चलेगा क्योंकि ऐसे चल तो #अफगानिस्तान और #पाकिस्तान भी रहा है...
#AyegaToModiHi
#AyegaToModiHi
09 मई, 2019
आईएनएस विराट व कांग्रेस की अय्याशियां
कल #रामलीला मैदान की रैली में #प्रधानमंत्री #मोदी ने #राजीवगांधी के ताबूत में एक और कील ठोक दी, ये कहकर की 1987 में गांधी परिवार ने देश के तत्कालीन इकलौते विमानवाहक युद्धपोत #आईएनएसविराट को एक टैक्सी की तरह, या यूं कहें कि एक प्राइवेट याच की तरह अपनी पारिवारिक छुट्टियां मनाने के लिए इस्तेमाल किया। सवाल ये उठता है कि देश की सुरक्षा से इतना बड़ा खिलवाड़ क्यों ? इस सबका ज़िम्मेदार कौन ? इसको ऐसे समझो, की राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, उनके साथ #सोनिया गांधी, बच्चे #राहुल और #प्रियंका गांधी, चलो ठीक है, लेकिन साथ मे उनके ससुराल वाले यानी सोनिया गांधी की माँ, उनका भाई और मामा भी, सोने पे सुहागा अपने #अमिताभ बच्चन साहब भी सपरिवार ओर तो ओर भाई अजिताभ की बेटी भी साथ, वही अजिताभ जिसके बंगले के पता राहुल गांधी ने अपने लंदन निवास और बैकऑप्स कंपनी के स्थायी पाते के रूप में दिया हुआ है, और साथ मे थे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण सिंह के भाई बिजेंद्र सिंह और वो भी परिवार सहित। ये सब हुआ एक द्वीप #बंगाराम पर, जहां आबादी नही है, अब ये समझो।कि आईएनएस विराट अकेला नही चलता, उसके साथ एक बेड़ा होता है जंगीजहाज़ों का, यहां तक कि एक पनडुब्बी भी साथ होती है, अब ये द्वीप सुनसान था तो 10 दिन रहने का प्रबंध जल सेना ने #लक्षद्वीप सरकार के साथ मिल कर किया, संसाधन नही थे तो हर छोटी बडी चीज़ के लिए हैलीकॉप्टर लगाए गए, क्या इस परोक्ष लूट की कल्पना की जा सकती है ? करोड़ो रूपये पानी की तरह बहा दिए गए, क्या यही वो सर्जिकल स्ट्राइक है जिनका #कांग्रेस अक्सर जिक्र करती है, की राजीव गांधी अपने लाव लश्कर, और इटालियन योद्धाओं के साथ युद्धपोत लेकर मछलियां पकड़ने गए थे। वैसे ये केवल राजीव गांधी के समय ही नही बल्कि #नेहरू के समय भी ऐसा ही था, वो भी राजीव, संजय और इंदिरा के साथ ऐसे ही छुट्टियों पर जाते थे, परंपरा कहो या फिर कांग्रेसियो की बाप की जागीर, ये देश ऐसे ही चला है...
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